Thursday, 9 November 2017

रानी पद्मावती के जीवन चरित्र पर कविता



सिंहल के राजा की बेटी, 
और चित्तौड़ की महारानी।
मुगलों के सिंहासन कांपे,
ऐसी थी वो क्षत्राणी।।1।।

यायावर भाटो के मुख से,
जिसका गान निकलता था।
दिल्ली के दरबारों में भी,
उच्च स्वर में बसता था।।2।।

ऐसी रानी पद्मिनी का,
यह इतिहास निराला है।
संजय तूने उस देवी का,
यह क्या चित्रण कर डाला है।।3।।

नाच नचाए घूमर खेले,
ऐसी ना क्षत्राणी थी।
शमशीरो से बात करें जो,
ऐसी सती वो रानी थी।।4।।
 
उस देवी के सुन बखान को,
खिलजी भी ललचाया था।
धोखेबाज वह धूर्त प्राणी,
नाक रगड़के आया था।।5।।

बोला मुझको दर्शन दे दो,
हे देवी महारानी।
सीधे दर्शन को मना कर गए,
वह रतन सिंह भी अभिमानी।।6।।

तालाब तीर पर एक झरोखा,
खिलजी का बनवाया था।
उसमे रानी पद्मिनी का,
चित्रण उसे कराया था।।7।।

मंत्रमुग्ध हो गया वो खिलजी,
मन में उसके पाप उठा।
देख चमक देवी रानी की,
लेने को संताप उठा।।8।।

रतन सिंह जी बड़े दयालु,
खिलजी को छोड़ने आए थे।
मुगलों से यारी ना करना,
यह गीत ना उन्हें सुनाए थे।।9।।

कैद किया अब महाराजा को,
और पद्मिनी मांगी थी।
रतन सिंह की कीमत उसने,
राजपूती से आंकी थी।।10।।

गोरा बादल का त्याग सकल,
जो युद्ध किया और जीत पाए।
पद्मिनी उसके हाथ ना लगी,
और रतन सिंह जी घर आए।।11।।

ललचाया खुजलाया खिलजी,
वापस दिल्ली लौट गया।
और बवंडर सेना लेकर,
वापस वो चित्तौड़ गया।।12।।

हाहाकार मच गई महल में,
सारे क्षत्रिय बलिदान हुए।
कट जाएं पर झुके ना गर्दन,
राजपूती का मान हुए।।13।।

गढ़ की दीवारों में फिर,
कुंड सजा वो जोहर का।
क्षत्राणीयो ने व्रत निभाया,
संकल्प लिया जो जोहर का।।14।।

हुतात्मा हम तो हो जाएं,
पर देह ना उसको देंगे हम।
उस पापी नरभक्षी खिलजी से,
पूरा बदला लेंगे हम।।15।।

 

ले हवस की आंखें खिलजी,
रजपूती में आया था।
देख क्षत्राणीयो का जोहर,
पूरा वह बौखलाया था।।16।।

युद्ध लड़े बलिदान हुए,
सेना इतनी मारी थी।
उस खिलजी की हवस तो देखो,
सारी दुनिया से हारी थी।।17।।

ऐसा पावन है इतिहास,
जिसे तोड़ ना पाएंगे।
भंसाली जैसे फिल्मकार,
इतिहास मोड़ ना पाएंगे।।18।।

रजपूती की मान की खातिर,
सारे हिंदू जग जाएं।
वरना ऐसे नाच नचइयो,
के आगे सर झुक जाए।।19।।

आज झुका तो कल कटने में,
देर नहीं फिर लगनी है।
आज समर जो हुआ अकेला,
ताकत फिर ना जगनी है।।20।।


सकल देश का मान पद्मिनी,
कैसे कोई अपमान करे।
आओ हम सब चले साथ में,
उस देवी का सम्मान करें।।21।।
उस देवी का सम्मान करें।।

महारानी पद्मिनी का इतिहास पढ़ने के लिए Click करें: https://pawansingh93.blogspot.com/2017/01/blog-post_30.html

ऊपर उल्लेखित कविता सुनने हेतु Click करें:-  https://youtu.be/ugy-UIQMIWM


-पवन सिंह "अभिव्यक्त"

Wednesday, 8 November 2017

नोटबन्दी के एक साल की उपलब्धियां

नोट बंदी की घोषणा 8 नवम्बर2016

नोटबंदी या डीमोनेटाइजेशन जिसे विमुद्रीकरण की प्रक्रिया भी कहते हैं, "कानूनी रूप से किसी मुद्रा को अमान्य करके उसके स्थान पर नई मुद्रा का प्रचलन करना विमुद्रीकरण कहलाता है"।

देश में जब भ्रष्टाचार बढ़ता है, नोटों की जमाखोरी बढ़ती हैं, तब ऐसा करना जरूरी होता है। पुरानी मुद्रा को हटाकर दैनिक जीवन में, बैंक की प्रक्रिया आदि में नई मुद्रा का प्रचलन किया जाता है,जिससे कि सरकार के टैक्स में सहायता होती हैं जो देश में विकास की योजनाओं में सहायता प्रदान करता है, बैंकों के पास निवेश की ताकत बढ़ती हैं, भ्रष्टाचार पर लगाम लगती हैं। कुल मिलाकर विमुद्रीकरण की प्रक्रिया किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में प्राण वायु का काम करती है, जो कि समय-समय पर जरूरी है।।

8 नवंबर 2016 मंगलवार की शाम 8:00 बजे तक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय चैनल पर आए किसी को आशा नहीं थी कि वह क्या कहने वाले हैं। सारा देश उनको सुनने के लिए आतुर था, परंतु उनके भाषण में जैसे ही तत्काल प्रभाव से अर्थात 8 नवंबर रात्रि 12:00 बजे से ₹500 व ₹1000 के नोटों को बंद करने की घोषणा की सारा देश स्तब्ध रह गया।
किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था, जिसके पास नोट थे, वे उन्हें कैसे भी ठिकाने लगाने के लिए, उनको जमा कराने के लिए रास्ता खोज रहे थे। कहीं जगह तो रात में बैंक के भी खोली गई। 



विमुद्रीकरण की यह प्रक्रिया हमारे देश में पहली बार नहीं की गई थी, इससे पहले भी देश की आजादी से पहले सन 1946 में उस समय के प्रचलित नोटों को बंद करके नई मुद्रा का प्रचलन प्रारंभ किया गया था, जिसे 1954 में बंद करके 1946 में बंद की गई ₹1000, ₹5000 व ₹10000 की पुरानी मुद्रा का पुनः प्रचलन शुरू किया गया जिसे सन 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार में जालसाजी व काले धन पर अंकुश लगाने के लिए बंद कर दिया गया था।
8 नवंबर की रात्रि जब नोटबंदी की घोषणा की गई तो सरकार को घेरने के लिए विपक्षियों को एक बहाना मिल गया था। विपक्षियों विरोधियों के बयान आने प्रारंभ हो गए और उन्होंने ऐसा अनुभव कराया कि जैसे देश में आपातकाल की घोषणा हो गई हो जिन लोगों ने आपातकाल का अनुभव किया शायद उनका ध्यान यहाँ नहीं था कि से पहले भी समय-समय पर यह पद्धति अपनाई गई है।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को 50 दिन अर्थात 31 दिसंबर तक का समय देकर आराम से पुराने नोट जमा कराने की मोहलत दी।  50 दिन में धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया, ना भीड़ रही, ना कोई धमाल, ना किसी प्रकार की कोई बैंकों के बाहर लाइन, सब तरफ एक अजीब सी शांति थी, जिसमें गर्व का अनुभव हो रहा था कि देश को एक ऐसा प्रधान सेवक मिला है जिसने वोट बैंक की चिंता ना करते हुए इतना बड़ा फैसला लिया और वह भी उस समय जब सारा देश सालों से भ्रष्टाचार, चाटुकारिता का आदि हो चुका था।  सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार राजनीतिक पार्टियों के बीच इतना बड़ा फैसला लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी।

नोटबन्दी के कारण अर्थव्यवस्था में से बड़े नोटो का अनुपात घटने से हवाला कारोबार पर रोक, भ्रष्टाचार पर अंकुश, घुसपैठ, आतंकवादी, उग्रवादी घटनाओं पर लगाम, कश्मीर में सेना के जवानों पर होती पत्थरबाजी की घटनाओं मेें कमी आई है, जिसके कारण आज आम जनता सुख चैन की सांस ले पा रही हैं।
नोटबंदी के बाद देश में एक अच्छे और सकारात्मक माहौल का निर्माण हुआ। नोटबंदी का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा। नोट बंदी होने के बाद कालाधन, नकली नोट की समस्या से निजात मिला जिसके आज 1 वर्ष बाद बहुत कुछ बदला हुआ दृष्टिगोचर हो रहा है। आज देश विश्वगुरु की राह पर अग्रसर हो रहा है, इसका एक बड़ा कारण नोटबंदी भी है।
नोटबंदी के समय कुछ परेशानियां जनता ने, देशवासियों ने अनुभव की जो कि जायज भी थी, परन्तु हमारे पुराने मकान को तोड़कर यदि नया घर बनाना हो तो परेशानी तो होती है, फिर यहां तो देश का निर्माण करना है जो कि वर्षों से भ्रष्टाचार,घोटालों से चल रहा था। इसमें सरकार, नेता केवल घर भरने के लिए आते थे।
पर आज परिस्थितियां बदली है, देश बदल रहा है इसलिए कुछ समय की तात्कालिक परेशानियों को छोड़कर देश आगे बढ़ने के लिए यदि कुछ छोटे-छोटे नोटबंदी जैसे तरीके अपनाता है, तो उसके लिए देश की जनता को सहर्ष रूप से सरकार का सहयोग करना चाहिए।।

-पवन सिंह "अभिव्यक्त"

Thursday, 2 November 2017

Whatsapp में आया नया फीचर


देश और विश्व के सबसे प्रचलित सोशल साइट
व्हाट्सएप पर समय समय पर बहुत बदलाव हुए है।
कुछ बदलाव ऐसे है जिनकी वास्तव में लोगो को आवश्यकता थी।।
एक ओर नया सिस्टम जुड़ा है वो भी आपको बता दु
आपके द्वारा भेजे गए संदेश को यदि आप हटाना (डिलीट) करना चाहते है तो अब ये आपसे तीन ऑप्शन मांगेगा
1. Delete for me- मतलब की केवल आपके लास से डिलीट होगा
2. Cancel-  मतलब डिलीट नही करना
 ओर
3. Delete for everyone- मतलब की आपके द्वारा भेजे गए संदेश को आप यदि सबके पास से डिलीट करना चाहते है तो इसका उपयोग कर सकते है।।। कभी कभी जल्दी में या गलती से कोई msg वहाँ फॉरवर्ड या send हो जाता है जिसे हम नही चाहते भेजना, ऐसी स्थिति में अब व्हाट्सएप ने एक नया सिस्टम जोड़ा है, जिसमे आप अपने द्वारा भेजे गए संदेश को send करने के 5 मिनिट के अंतराल में यदी डिलीट कर देते है तो सामने वाले के पास से भी डिलीट हो जाएगा।।
किसी को भी कोई संदेश गलती से जल्दी में भेज गया ओर से डिलीट करने चाहते है तो इससे कर सकते है,
इसके डिलीट करने के बाद सामने वाले को आपका संदेश नही दिखेगा।।।
 अपडेट करने के बाद आपको व्हाट्सएप में symbol भी कलरफूल देखेंगे।


so Plz Update your whatsapp and enjoy it..

-पवन सिंह "अभिव्यक्त"

Thursday, 19 October 2017

बाती और दीपक की प्यार तकरार भरी बातें


●बाती ने कहा रे दीपक सुन:-
तू तो दुनिया में दिखता है।
◆बोला दीपक की सुन बाती:-
जो दिखता है वो बिकता है।
●सुनकर बाते फिर दीपक की,
बाती फिर से बोल उठी:-
तू दिखता है तो दिख जाए,
तू बिकता है तो बिक जाए।
पर मैं तिल तिलकर जलती हूँ,
और जलते में भी चलती हूँ।।
◆सुनके दीपक भी बोल उठा:-
तू जलती है ये बात सही
पर जग तेल मुझी में ढोता है।
●तेल तुझमे ढोने से क्या 
तू प्रकाश दे पाता है।
करने उजियारा दुनिया मे 
तू मेरे पास ही आता है।
◆दीपक बाती की सुन व्यथा
ऊंचे स्वर में बोल उठा:-
तू उजाला देती है,
और अंधियारा ले लेती है।
पर मैं जितना चलता हूँ,
उतना तू चल पाती है।
तपता रहता मैं घड़ी घड़ी,
तभी उजाला दे पाती है।
●बोली तुनककर बाती भी:-
मैं जलती सारी रात तभी
तू उजाला दे पाता है,
भरे हुए उस तेल में बता,
डुबकी कौन लगता है।
◆बाती की सुनकर बात ऐसी
दीपक मन्द- मन्द मुस्काया,
बोला मेरी प्यारी बाती,
ये सब तुझे किसने बताया।
तू ना मुझसे नही पराई,
तू मेरी है मैं तेरा हूँ।
बिन तेरे मैं मैं नही,
बिन सूरज का सवेरा हूँ।
●बोली बाती की रे दीपक:- 
बिन तेरे ना रह पाऊँगी।
जो तू मेरे पास नही,
मैं तमस नही हर पाऊँगी।
◆अंत में दीपक बोल उठा,
मन की गांठे खोल उठा:-
तू दिल के सारे बैर भूला,
एक दूसरे के हो जाते है।
मिटा के सारे शिकवे गीले,
आ नई दीवाली मनाते है,
हम एक दूजे में खो जाते है।
एक दूजे में खो जाते है।

दीपोत्सव की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
ये दीवाली आपके जीवन मे खुशियों से भरी दीवाली हो।।

-पवन सिंह"अभिव्यक्त"

Wednesday, 11 October 2017

विदेशी महिला के पुत्र की विदेशी और गन्दी सोच


60 सालो तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के उत्तराधिकारी और एक विदेशी महिला के पुत्र राहुल गांधी जहां भी चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं, वहां कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी का बेड़ा गर्क कर के ही आते हैं। राहुल गांधी ने पिछले सालों में जहां जहां चुनाव प्रचार किया वहां कांग्रेस बुरी तरह हारी हैं और यह बात इनकी पार्टी के दूसरे बड़े नेता भी समझते-जानते हैं, परंतु इस परिवार की भक्ति से बाहर नहीं निकल पाने के कारण वह उखड़े मन से ही सही राहुल बाबा की जय जयकार करते रहते हैं।
राहुल गांधी हो तो गए 40 ऊपर के पर उनकी बुद्धि आज भी बच्चों और पागलों से भी ज्यादा खतरनाक है, अपने उल फिजूल कार्यों और बयानों के कारण तात्कालिक सुर्खियां तो बटोर लेते हैं परंतु भविष्य में गड्डा खोदकर उसमें पार्टी को गाढ़ कर ही दम लेते हैं।
जब सरकार में थे तब खूब मलाई खाई, खूब माल बटोरा और जब मनमोहन सरकार जाते-जाते दागी नेताओं वाला अध्यादेश लाई तो उसे ही फाड़कर पार्टी के विभीषण बन गए (27 सितंबर 2013),
आज गुजरात के चुनाव के लिए मंदिर मंदिर भटक रहे राहुल गांधी अपने पिता की 70वीं जयंती पर दिल्ली में बोले कि "मंदिर जो लोग जाते हैं वह लड़कियां छेड़ने जाते हैं।"कभी खुद ही हंसी के पात्र बनकर फटा कुर्ता दिखाते हैं।।
https://pawansingh93.blogspot.com/2017/01/blog-post_19.html

उनकी समझ तो कुछ है ही नहीं पर इनके सहयोगी भी इनके मजे लेने से नहीं चूकते वो लोग भी ऐसी स्क्रिप्ट लिखते हैं कि बेचारे राहुल गांधी फंस जाते हैं।
गुजरात चुनाव में धुआंधार प्रचार में लगे गांधी ने कल बड़ोदरा में अपनी मूल भावना, मूल्य सोच और जन्म की प्रवृत्ति दर्शाने वाला बयान देकर सुर्खियां बटोरने की कोशिश की। RSS के ज्ञान के मामले में शून्य गांधी ने कल बड़ोदरा में कहा कि "RSS में कितनी महिलाएं हैं, उनको अपनी आपने कभी शाखा में शॉर्ट्स में देखा है?? मैंने तो नहीं देखा??"



अब इनको कौन बताए कि RSS की एक महिला इकाई भी है जिसकी पोशाक पारंपरिक वेश हैं। इनकी मां वाला शॉर्टस-बिकनी नहीं। 
राहुल का यह बयान उनकी मानसिकता को बताता है जो व्यक्ति कभी पोर्न स्टार के साथ दिखता हो, कभी संसद के महत्वपूर्ण सत्रों को छोड़कर महीनो विदेश में छुट्टियां मनाता हो,वह क्या यहां के परंपरागत वेश को समझेगा।

उसे मां बहन तो दिखती नहीं उसे चाहिए शॉर्ट्स वाली पोर्नस्टार स्पेनिश नतालिया रोमास जैसी बालाएं।।
राहुल की पार्टी के लोगों को अब तो संभल जाना चाहिए और इस दिमागी पागल आदमी को जल्दी से रिटायरमेंट देना चाहिए वरना 2014 में 47 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इनकी हरकतो से वो आंकड़ा 4 पर ले जाएगी तब ना विपक्ष बचेगा, ना देश में कांग्रेस।कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भले बीजेपी ने दिया हो पर उसको पूरा करने के लिए राहुल गांधी जैसे लोग कांग्रेस में दिन रात काम कर रहे हैं, इनको चुपचाप घर बिठाकर पार्टी की कमान बड़े नेताओं को संभालना चाहिए वरना दुर्गति होने ही वाली है।।

-पवन सिंह "अभिव्यक्त"
मो. 9406601993

Saturday, 30 September 2017

17 के 17 रावण का अंत करे...

17 के 17 रावण

दुर्गा पूजा हमारे देश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो संपूर्ण देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

दुर्गा पूजा पर हमारे मालवांचल क्षेत्र में मां दुर्गा की आराधना के लिए गरबा नृत्य का आयोजन गांव-गांव, गली-गली में किया जाता है, जिसमें बालक-बालिकाएं, महिला-पुरुष, क्षेत्र के सभी लोग बढ़-चढ़कर, सज-धजकर हिस्सा लेते हैं, जिसका समापन इस वर्ष आज ही हुआ है।
समय के साथ-साथ बढ़ते आधुनिकीकरण के नाम पर मां दुर्गा के पूजा स्थल अर्थात गरबा को भी व्यापार बना लिया गया। गरबा नृत्य कार्यक्रमों में, पंडालों में फूहड़ता परोसी जाती हैं जो ठीक नहीं है। दुर्गा पूजा के बाद दसवे दिन दशहरा अर्थात बुराई के प्रतीक रावण को जलाया जाता है, बुराई का अंत किया जाता है।

आधुनिकता के बीच इस दशहरे पर मां भारती की रक्षा, सेवा, स्वच्छता का संकल्प लेकर हमें गंदगी रुपी रावण को जलाकर स्वच्छता रूपी नया सवेरा लाने का संकल्प प्रत्येक भारतीय को लेना चाहिए। वह स्वच्छता चाहे गली-मोहल्लों की हो या मन की।

मन के रावण बहुत है जिनका अंत करके हम हमारे आसपास के क्षेत्र को अयोध्या बना सकते है, जिसमे सब राम निवास करते हो।। ऐसे मन के रावण है👇🏻

1. बेरोजगारी
2. असमानता
3. अशिक्षा
4. गरीबी
5. आतंकवाद
6. घुसपैठ
7. भ्रष्टाचार
8. युवाओ में नशाखोरी
9. बाल विवाह
10. दहेज प्रथा
11.बालिका भ्रूण हत्या
12. जातिवाद
13.अश्पृश्यता की समस्या
14. भेदभाव
15.अंधविश्वास
16. रूढ़िवादिता
17. युवा में देशप्रेम की कमी

इस वर्ष अर्थात 2017 में 17 रावण का अंत अगर हम कर पाए तो तो ये नवरात्रि ओर दशहरा सार्थक होगा।
मन व्याप्त इन रावणो को नष्ट करके नए भारत के निर्माण के लिए प्रत्येक भारतवासी को आगे आना चाहिए, जिससे भारत माता को विश्वगुरु के सिंहासन पर शीघ्रता से पहुँचाया जा सके, जहां बैठकर माँ सारे विश्व का मार्गदर्शन कर सके।


-पवन सिंह "अभिव्यक्त", दोरवाडा, मंदसौर

Thursday, 21 September 2017

माँ दुर्गा का दूसरा रूप- ब्रह्मचारिणी

जय माता दी


नवरात्रि में मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली।

देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
आत्म शांति, सदाचार, संयम आदि गुणों को प्राप्त करने के लिए माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान मनन करना चाहिए।। माँ स्वयं त्याग तपस्या की मूर्ति है, जो अपने भक्तों को इच्छित वरदान देती है।।

मंत्र:-
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अभिव्यक्त मंदसौर

✍🏻 पवन सिंह "अभिव्यक्त"

नवरात्रि के प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री की आराधना


जय माता दी

वर्षभर के पश्चात पुनः मां दुर्गा की शक्ति की आराधना का पर्व आ ही गया। नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का भिन्न-भिन्न तरीके से पूजन अर्चन करते हुए मां की आराधना भक्तों द्वारा की जाती है और मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए जाते हैं। मां दुर्गा के विभिन्न रूपों में प्रत्येक रूप का वर्णन प्रतिदिन प्रस्तुत है:- 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
चित्र:- माँ काली मंदिर, कालीघाट, कोलकाता

आज नवरात्र का पहला दिन है। प्रथम दिवस मां दुर्गा को "शैलपुत्री" रूप से जाना जाता है और मां दुर्गा की शैलपुत्री रूप की पूजा अर्चना की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म होने के कारण आप "शैलपुत्री" कहलाई।

"मां शैलपुत्री" हिमालय जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति की प्रतीक हैं, मां दाएं हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल धारण किए हुए हैं।
जीवन में दृढ़ता लाने के लिए मां शैलपुत्री का पूजन अर्चन भक्त करते हैं।

मंत्र:-
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

माँ शैलपुत्री आपके जीवन मे दृढ़ता लाये और जीवन को स्थिर करते हुए आपको सदैव स्वस्थ प्रसन्न रखे।।



✍🏻पवन सिंह"अभिव्यक्त"

Thursday, 14 September 2017

हिंदी हिन्द का है सम्मान





"हिंदी हिन्द की है पहचान,
हिंदी मेरे देश का ज्ञान,
पढ़ ले, सुन ले और समझ ले,
हे रे मेरे देश महान।।"

14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
               
वर्तमान में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में भी लगभग 45 करोड़ लोग हिंदी भाषी राज्यों में निवासरत हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी अर्थात 121 करोड़ में से 41% आबादी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने के मामले को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75% लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75% आबादी सहित विश्व के अन्य देशों जैसे पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालद्वीप, म्यामार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी,न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मारीशस, कनाडा, इंग्लैंड, अमेरिका आदि देशों को मिलाकर लगभग 80 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोल व समझ सकते हैं।
                 
वर्तमान में हिंदी के विश्व में बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वैसे यूनेस्को की 7 भाषाओं में हिंदी पहले से ही शामिल है। विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण लोगों में हिंदी के प्रति भी रुचि बड़ी है आज चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, रूस, इटली आदि देशो के मिलाकर लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम में किसी न किसी रूप में शामिल है। 

हमें आवश्यकता है हिंदी के बढ़ते प्रभाव व हमारे देश की मातृभाषा के सम्मान को बनाए रखने व हमेशा बढ़ाने की। हम भी आगे आएं, हमारे नित्य जीवन, दैनिक दिनचर्या में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें व लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करें। अन्य भाषाएं सीखने व पढ़ने के लिए पढ़ी जा सकती हैं परंतु उन भाषाओं को ही सब कुछ ना माने क्योंकि हमारी मातृभाषा हिंदी विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में से एक है इसका सम्मान यदि हम करेंगे तो ही विश्व हमारा, हमारे देश का व हमारी मातृभाषा का सम्मान करेगा।।

-पवन सिंह"अभिव्यक्त
मो. 9406601993

Monday, 14 August 2017

अखण्ड भारत का संकल्प ले युवा!!!!



पास नही है वो ननकाना,
वो लवपुर लाहोर नही, 
हिंगलाजमाता का मंदिर,
वो पटसन की डोर नही।
बरसो जिसने ज्ञान बिखेरा,
तक्षशिला भी हुआ पराया,
हुई परायी धरती अपनी,
नलव ने जो ध्वज फहराया।।

15 अगस्त का दिन भारत की स्वतंत्रता का दिन है, इसी दिन भारतवासी गोरे अंग्रेजो के चंगुल से आजाद हुए थे, इसलिए यह दिन सम्पूर्ण भारत वर्ष में बड़े उत्साह, उल्लास और खुशी से मनाया जाता है। खुशी और उत्साह होना भी चाहिए क्योंकि स्वतंत्रता से बड़ी कोई चीज़ नही होती। पशु-पक्षी भी आज़ादी में सांस लेना पसन्द करते है, हम तो इंसान है, जो इस ऋषियो मुनियो की धरती पर, कुछ नया सीखाने व कराने वाली भारत भूमि पर जन्मे है, इसलिए मानव कहलाये है। हमें तो सदियों से कोई बंदिश नही रोक पाई, जो कोई हमे गुलाम बनाने आया, वह कुछ नया सीखा कर गया और ऐसे ही अंग्रेज भी आकर चले गए।
स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मनाते समय यह बात मन में आना चाहिए क्या वास्तव में हमारा देश इतना ही बड़ा था।  नयी पीढी तो 1947 की आजादी के समय जो मिला उसे ही अपना देश मानकर उसकी पूजा करती आ रही है क्योंकि उसे पता ही नही की अखण्ड भारत कैसा था?? वो भारत माता कैेसी थी जो विश्वगुरु के सिंहासन पर विराजित होकर सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान का संदेश देती थी?? कैसे अपनी भारत माता के एक-एक अंग कटते चले गए? कैसे भारत का हिस्सा कम होता चला गया?? यह सब वर्तमान पीढ़ी के सामने आना चाहिए। अखण्ड भारत की सीमाएं दूर दूर तक फैली हुई थी। भारत ने कभी किसी पर भी आक्रमण नही किया, परन्तु संस्कृति की विजय पताका लिए सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान हेतु भारत के ऋषि मुनि विश्वभर में गए। शायद इसलिए भारत की सांस्कृतिक सभ्यता के चिन्ह आज भी विश्वभर के लगभग सभी देशों में मिल जाते है। यह एक ऐतिहासीक सत्य है कि सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से भारत की सीमाएं पश्चिम में ईरान से पूर्व के बर्मा तक फैली हुई थी। भारत ने सम्भवतः विश्व में सबसे अधिक सांस्कृतिक व राजनीतिक आक्रमण झेले है, इन आक्रमणों के बावजूद  भारतीय संस्कृति आज भी मौजूद है। किसी कवि ने क्या खूब कहा है कि-
यूनान, रोम, मिस्र, सब मिट गए जहाँ से।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी।।

लेकिन इन आक्रमणों के कारण भारत की सीमाएं सिकुड़ती चली गई। भारत माता के अंग कटते चले गए। अभी जो हमारे पड़ोसी देशों में मां के मुकुट कश्मीर के ऊपर अफगानिस्तान दिखता है, वह पति परायणा गांधारी के निवास स्थान गांधार वाला क्षेत्र था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आक्रमण के बाद सन 1876 ईस्वी में हम से कट गया। विश्व में एकमात्र हिंदू राज्य नेपाल जहां गोरखाओं का राज्य था, वह 1904 में हमसे पृथक हो गया। 1906 में भूटान भारत का हिस्सा नहीं रहा।  1914 में तिब्बत तो 1935 में श्रीलंका हमसे अलग हो गया। ब्रह्म देश कहां जाने वाला बर्मा (म्यांमार) 1937 ई. में भारत से काट दिया गया। जिस रावी के तट पर बैठकर सन 1929 ईस्वी में देश के नेताओं ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया था, वो रावी आज भारत का अंग नही है।
 1937 के कलकत्ता के कांग्रेस के अधिवेशन में वंदे मातरम का विरोध होता है और मां भारती का वंदना का यह गीत काट-छांटकर आधा कर दिया जाता है। वास्तव में जो कुछ भारत के साथ हुआ, जिसमें 1929 में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग का स्थान रावी का तट, भगवान श्री राम के पुत्र लव द्वारा बताया गया लवपुर (लाहौर), भरत के पुत्र तक्ष द्वारा बताई नगरी तक्षशिला जो आचार्य चाणक्य की कर्मभूमि थी। वह आज की रावलपिंडी, सिख गुरु नानक देव का जन्म स्थान श्री ननकाना साहेब, 52 शक्तिपीठों में से सबसे प्रसिद्ध हिंगलाजगढ़ शक्तिपीठ आदि भारत माता के गौरव के स्थान हमसे कटकर पाकिस्तान बना दिया गया।
इसकी धीमी शुरुआत 1937 ईस्वी के कलकत्ता अधिवेशन में वंदे मातरम गान के काटने से ही हो गई थी और उसी का परिणाम रहा कि 14 अगस्त 1947 ईस्वी को जब सारा देश को रहा था,नेताओं की बिसात पर पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण हो गया वही कालांतर में बांग्लादेश कहलाया।
 15 अगस्त की सुबह भारतीयों ने गुलामी की बंदिशो को तोड़कर स्वतंत्रता का स्वाद तो चखा परंतु मां भारती के दोनों हाथ का देने के बाद। 1948 में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर आधा हमसे कटकर चला गया, भगवान महादेव का निवास स्थान कहे जाने वाले कैलाश मानसरोवर की भूमि आज चीन के पास हैं, जहाँ उसने इस वर्ष यात्रा की अनुमति नही दी। जो भूमि 1857 ई. तक भी लगभग 83 लाख वर्ग कि.मी. हुआ करती थी वो आज लगभग 32 लाख वर्ग किलोमीटर ही रह गई है।।
ऐसे में जिस भूभाग को हम भारत कहकर स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, उसमें से कल कौन सा भाग अलग होकर नया देश बन जाए पता नहीं। ऐसा केवल इसलिए होता आया हैं कि हमने इस देश को मात्र भूमि (जमीन का टुकड़ा) माना, मातृभूमि नहीं। हमने देश को मातृभूमि माना होता तो क्या जब हमारी माता के अंग कट रहे थे तब हम ऐसे बैठे रहते?? हमारी मां की अस्मिता को लूटते हुए हम ऐसे  देखते रहते?? शायद नहीं।।
इसलिए इस भारत भूमि पर निवासरत विश्व की सबसे बड़ी युवा पीढ़ी को वास्तविकता का ज्ञान कराने के लिए 14 अगस्त को अखंड भारत संकल्प दिवस मनाया जाता हैं, ताकि कम से कम हमारे मानस पटल पर हमारी पूज्य भारत माता का अखण्ड चित्र तो रहे। विचार में भारत माता पूरे आकार में, अखंड रूप में हमारे सामने रहेगी तो कभी ना कभी धरातल पर भी हम उस विचार को साकार रूप दे सकेंगे। जब पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हो सकते हैं, उतरी और दक्षिणी कोरिया एक होने का सपना देख सकते हैं, इजराइल के निवासी यहूदीयो को 1800 वर्षों बाद अपनी मातृभूमि पुनः प्राप्त हो सकती है, तो भारत की अखंडता का सपना पूरा क्यों नहीं हो सकता??
इसलिए स्वतंत्रता दिवस अवश्य मनाइए लेकिन इससे पहले अखंड भारत को याद कीजिए और अपनी भावी पीढ़ी को बताइए कि यह भूमि केवल मात्र भूमि नहीं है यह तो हमारी मातृभूमि है जिसका कोई भी अंग हमसे अलग ना रह पाए।  यह दिवस मनाना इसलिए भी जरुरी है कि जाने बिना माना नहीं जा सकता और माने बिना किया नहीं जा सकता। जानना 'ज्ञान' है और मानना 'भक्ति' व करना 'कर्म' है। ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी के सामंजस्य के बिना कल्याण सम्भव नहीं है। इसलिए अखंड भारत क्या है, यह जाने।। हमारी भारत माता का वास्तविक चित्र कैसा है, जाने और कटे-फटे चित्र को अखंड कैसे बना सकते हैं, जो आज हैं वह हमसे कट ना जाये, इसका प्रयास करें क्योंकि किसी ने कहा है कि-

देश बचेगा तो मिटेगा कौन???
और
देश मिटेगा बचेगा कौन??

देश को अखंड बनाने के लिए कहीं महात्माओं ने जीवन की आहुति दी है और कई इसी राह पर चलकर जीवन को धन्य कर रहे हैं। चूंकि यह गंगा की अनवरत चलने वाली धारा है। जिस प्रकार गंगा को किसी भी बांध से रोका नहीं जा सकता, वह समुद्र में मिलेगी ही, उसी प्रकार अखंड भारत का स्वप्न पूरा निश्चित ही होगा।।
यह विश्व तो शक्ति का आराधक हैं। जो राष्ट्र शक्ति की पूजा एवं अर्चना करता है वही राष्ट्र अपना इच्छित लक्ष्य भी प्राप्त करता है और यह भारत सर्वशक्तिमान राष्ट्र बनेगा तभी हम पर परम् वैभव के लक्ष्य को पूरा कर सकेंगे।।

-पवन सिंह"अभिव्यक्त"
मो. 9406601993

Wednesday, 26 July 2017

कारगिल विजय दिवस पर कुछ पंक्तियां


जीवन की राह में आगे बढ़ता जा
"जय श्री राम" का शंखनाद दुनिया को सुनाता जा।।
तेरी सफलता का मार्ग प्रशस्त तू करता जा
रख मन में हौसला सफलता का।।
तू उठ और चलता जा, लहरा दे जग में "भगवा विश्वगुरु" का।।
अपने तो क्या, करे गर्व पूरा भारतवर्ष तुझ पर
ऐसी डगर नयी बनाता जा।।
तू न रुकना, ना तू थमना
बस "वन्दे मातरम" का घोष "अखण्ड भारतवर्ष" में करता जा।।

जय हिंद।।⛳⛳

सिंह चौहान

Wednesday, 12 July 2017

अमरनाथ यात्रियों पर हमले और दोगले हिंदु


💥 वर्तमान की अमरनाथ यात्रा पर हुए आतंकी हमले और दोगले हिन्दुओ की नीति को दर्शाती कुछ पंक्तियां💥

कश्मीर में होते हमले, देते है संदेश यही।
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का, यहाँ नही परिवेश कोई।।

हम उनको तो भाई माने, वो तो गाली देते है।
हम उन पर फूल बरसाते, वो तो गोली देते है।।

हम कहते तो दोगले हिन्दू, नाक चढ़ा कर बैठ जाते,
हम बोले तो सेकुलरो के, कुनबे बाहर आ जाते।

अवार्ड वापसी, नारे बाजी, इनके गोरखधंधेे है,
जब हिन्दू मरता पिटता है, तब ये होते अंधे है।।

कश्मीर को जलते देखो, कोई भी ना बोलेगा।
मुँह पर लगे हुए है ताले, कोई भी ना खोलेगा।।

डरा नही सकते ये हमले, अमरनाथ की भक्ति को।
शायद कम माना है तुमने, हिंदुत्व की शक्ति को।।

मत छेड़ो तुम चुप बैठो, वरना पाकिस्तान मिटा देंगे।
लाहौर से ढाका तक, हिंदुस्तान बना देंगे।।

हिन्दुओ की थाती गाती, हर दम नए तराने है।।
डरते नही तुम कायरों से, गाते शिव के गाने है।।

"अभिव्यक्त" यह कहता है कि, सामने का ना होगा द्वंद।
बहिष्कार हो पूरा इनका, दोस्ती यारी हो पूरी बन्द।।

Pawan Singh, Mandsaur

मूल रचना✍🏼 पवन सिंह "अभिव्यक्त", दोरवाडा, मंदसौर
मो.- 9406601993

Sunday, 9 July 2017

गुरु पूर्णिमा पर सनातनी गुरु भगवा ध्वज पर कविता

⛳ गुरु पूर्णिमा पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं⛳

ईश्वर का सन्देश सुनाए, भगवा ध्वज अपना सुहाना।
आदि धर्म का चिन्ह हमारा, मानवता का यही घराना।
हम सबकी पहचान यही है, सकल विश्व में इसे ले जाना।।

दो भुजाएँ ध्वज की कहतीं, ब्रह्म एक, जड़-चेतन रूपा,
सारे विश्व मे यही विराजे, सूक्ष्म रूप में यही स्वरूपा।
यह सनातन दर्शन अपना, इसकी महिमा को ऋषियों ने जाना।।
ईश्वर का सन्देश सुनाए, भगवा ध्वज अपना सुहाना।।1।।

सूर्योदय की गहरी लालिमा, विश्व सूर्य से ऊर्जा पाता,
तमस मिटाए सारे जग से, कण-कण में उत्साह जगाता।
त्याग समर्पण की गाथा वाला, ऋषियों मुनियो का ताना-बाना।।
ईश्वर का सन्देश सुनाए, भगवा ध्वज अपना सुहाना।।2।।


त्याग शौर्य और बलिदानो का, अजर अमर इतिहास यहाँ,
भगवा ध्वज की थाती वाला, सनातनी आदर्श यहां।
जो इसकी महिमा ना जाने, उसको अब हमको बतलाना।।
ईश्वर का सन्देश सुनाए, भगवा ध्वज अपना सुहाना।।3।।


Pawan Singh Abhivyakt

मूल रचना ✍🏼 पवन सिंह"अभिव्यक्त" , मंदसौर

Monday, 26 June 2017

आपातकाल के काला इतिहास

आपातकाल का काला अध्याय- इंदिरा की तानाशाही
                        🔥 सोचिये🔥

हिंदुस्तान की नौजवान पीढ़ी, आज के आजादी के माहौल में खुलकर अपने विचार रखती है, जब चाहे देश के विरोड में खड़ी हो जाती है, कभी देश को गाली देने के लिए, कभी देश के टुकड़े करने के नारे लगाने के लिए। सरकार के काम काज की आलोचना भी करती है लेकिन सोचिए अगर नौजवानों को फेसबुक की हर पोस्ट पहले सरकार को भेजनी पड़े और सरकार जो चाहे वही फेसबुक पर दिखे तो क्या होगा?? अगर, ट्विटर, व्हाट्स एप के मैसेज पर सरकार की नजर हो। टीवी पर वही दिखे-अखबार में वही छपे जो सरकार चाहे-यानी लग जाए बोलने-लिखने-सुनने की आजादी पर ताला तो क्या होगा?

आज की पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती, लेकिन जिन लोगों ने 41 साल पहले आपातकाल का दौर देखा है-वो जानते हैं तब क्या होगा?

आपातकाल, मतलब सरकार को असीमित अधिकार थे।
आपातकाल वो दौर था जब सत्ता ने आम आदमी की आवाज को कुचलने की सबसे निरंकुश कोशिश की। इसका आधार वो प्रावधान था जो धारा-352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार देती है। आपात काल का मतलब था-
-इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं।
-लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी।
-मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे
-सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी।

इंदिरा जिस शॉक ट्रीटमेंट से विरोध शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया।  एक मरघट की शांति पूरे देश में स्थापित हो गई। फिर भी उस शांति में इंदिरा के घमण्ड का अट्टहास सम्पूर्ण भारत मे गूंज रहा था।।। वो तानाशाही के 19 महीने और उसकी प्रताड़ना जिन्होंने झेली है वो ही बता सकते है।।
जनता का ,जनता के लिये, जनता के द्वारा किया जाने वाला शासन लोकतन्त्र ऐसे पावन शासन की हत्या तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा फिरोज गांधी के द्वारा आज ही के दिन (25 जून 1975 की आधी रात से 21  मार्च 1977) की गई।

मुझे गर्व है की मैं उस संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूँ जिसने देश को इस काले अंधकार से बाहर निकला।

स्वयं उस काले इतिहास को पढ़े और सबको पढाये
⛳ भारत माता की जय⛳
"Pawan singh Mandsaur"

✍🏼 पवन सिंह"अभिव्यक्त"

Friday, 28 April 2017

EVM जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और उम्मीद आइना


EVM में हेकिंग वाले कहा गये.....
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी राष्ट्र के चुनाव आयोग के लिए तथा उस देश के लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। फर्जी मतदान की रोकथाम तथा मतदान केंद्रों पर कब्ज़ा जैसी दोषपूर्ण घटनाये स्वच्छ लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरा है। इन बातों को ध्यान में रखकर भारत का चुनाव आयोग समय समय पर स्वतंत्र, पारदर्शी तथा निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार करता रहता है।

इसी सुधार में एक सुधार मतदान करने के तरीके में हुआ जब सन 1982 में पुरानी बैलेट पेपर वाली मत पत्र प्रणाली को त्यागकर केरल के परुर विधानसभा क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर सर्वप्रथम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग किया गया परन्तु इसके बाद EVM का उपयोग इसलिए नही हुआ क्योंकि इन मशीनों के उपयोग को वैधानिक रूप दिए जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का आदेश जारी हुआ था। 1988 दिसम्बर में संसद में इस कानून में संसोधन किया और 'जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951' में नई 'धारा-61 A' जोड़ी गई जो की चुनाव आयोग को EVM मशीनों के उपयोग का अधिकार देती है, यह अधिनियम 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ।
तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा 1990 में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई गई। भारत सरकार ने ईवीएम के इस्तेमाल संबंधी विषय विचार के लिए चुनाव सुधार समिति को भेजा।
भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया। इसमें प्रो.एस.सम्पत तत्कालीन अध्यक्ष आर.ए.सी, रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (तब आईआईटी दिल्ली के साथ) तथा डॉ.सी. राव कसरवाड़ा, निदेशक इलेक्ट्रोनिक्स अनुसंधान तथा विकास केन्द्र, तिरूअनंतपुरम शामिल किए गए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये मशीनें छेड़छाड़ मुक्त हैं।
24 मार्च 1992 को सरकार के विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानूनों, 1961 में आवश्यक सुधार हेतु अधिसूचना जारी की गई।

चुनाव आयोग ने चुनावों में EVM के पूर्ण इस्तेमाल के लिए स्वीकार करने से पहले उनके मूल्यांकन के लिए पुनः एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। प्रो.पी.वी. इनदिरेशन, आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल इसके सदस्य बने। तब से निर्वाचन आयोग ईवीएम से जुड़े सभी तकनीकी पक्षों पर स्वर्गीय प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (पहले की समिति के सदस्य), आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल से लगातार परामर्श लेता है। नवम्बर, 2010 में आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञ समिति का दायरा बढ़ाकर इसमें दो और विशेषज्ञों-आईआईटी मुम्बई के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो.डी.के. शर्मा तथा आईआईटी कानपुर के कम्प्यूटर साइंस तथा इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. रजत मूना (वर्तमान महानिदेशक सी-डैक) को शामिल किया।।
हमारे देश में 1999 के बाद आमचुनाव तथा राज्यो के विधानसभा चुनाव में आंशिक रूप से उपयोग शुरू हुआ जो की 2004 के बाद सारे देश में पूर्ण इस्तेमाल किया जाने लगा।
पुरानी मतपत्र प्रणाली (बैलेट पेपर) की तुलना में EVM से वोट डालने में समय कम तथा परिणाम घोषित करने के समय में कमी आई है। EVM के इस्तेमाल से फर्जी मतदान, बूथ हैकिंग जैसी घटनाओं पार पाया जा सकता है। समय समय पर चुनाव आयोग तथा उसकी विशेषज्ञ टीमें इस बात को मानती आई है कि EVM मशीनों के साथ किसी प्रकार की छेड़खानी असम्भव है, परन्तु पिछले कुछ समय से कुछ राजनितिक पार्टियां चुनावों में हार का ठीकरा EVM पर फोड़ रही है और यह मानने से सदैव इंकार कर रही है कि उनके कुकर्मो या जनता में ख़राब छवि के कारण हार का सामना करना पड़ा।।
ऐसे नेता जो देश की निष्पक्ष संस्था जो सारे देश में पारदर्शी चुनाव कराने हेतु दृढसंकल्पित है पर आरोप लगाकर उसे ही गलत सिद्ध करने तथा खुद की हार का दोष आयोग पर मढ़ते रहते है उन पर चुनाव आयोग को सख्ती से पेश आना चाहिए और उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।।
EVM जनता की आशाओं आकांक्षाओं और उम्मीद का वो आइना है जिनमे जनता अपना सुनहरा भविष्य देखती है और आने वाले 5 वर्षों हेतु विकास की दशा दिशा तय करती है।। वो जनता EVM के माध्यम से अपना मत सुरक्षित करती है और जब परिणाम आते है तो वो जनता के लिए कोई आश्चर्य वाले नही होते क्योंकि उसे जिस पर विश्वास होता है उसे वो वोट देते हैं और वो ही जीतता है।।
जनता जिसे चाहे चुने, जिसे चाहे नकारे और ऐसे में हारने वाली पार्टी को हार सहर्ष स्वीकार करना चाहिए और हार का आत्ममंथन करना चाहिए यही लोकतंत्र की मर्यादा है, ना की मर्यादा लाँघकर निष्पक्ष संस्था पर ही आक्षेप लगाकर उसे कटघरे में खड़ा करे।
Pawan Singh Dorwada
-पवन सिंह"अभिव्यक्त" , दोरवाड़ा, मंदसौर
मो.9406601993

Wednesday, 5 April 2017

हे राम! अब आ जाओ...


हे राम! इक जन्म ओर धरो,
हे राम! अब तुम आ जाओ।
कौशल्या माँ की कोख से आके,
धरती का मंगल कर जाओ।।

पञ्च ग्रह जब उच्च जगह हो,
नौमी चेत का शुक्ल पच्छ हो।
चाँद सितारे फूल बरसाए,
ऐसा पावन समय अच्छ हो।
आकर मंगल घड़ी में भगवन,
जग की पीड़ा हर जाओ।।१।।
         हे राम! अब तुम आ जाओ।।

बिना गुरु के ज्ञान नही,
भगवान् बिना संसार नही।
भक्ति बिना गुरु वशिष्ठ के,
शक्ति का अंबार नही।
पाकर ऐसी शक्ति न्यारी,
धरती का मंगल कर जाओ।।२।।
          हे राम! अब तुम आ जाओ।।

अब सीता माँ ना सुख पाती,
रावण से हर दिन हर जाती।
असुरो की शक्ति से बचके,
निकल नही वो फिर पाती।
तुम आ जाओ अब दुष्ट मिटाने,
संग लखन हनुमत को ले आओ।।३।।
         हे राम! अब तुम आ जाओ।।

कब तक धरती माता रोये,
देवी कन्या चित्कार करें।
कब तक असुरों की बलि नही,
दानवदल हाहाकार करे।
नष्ट करो अब इन असुरो को,
या हमको वर ये दे जाओ।
माता की रक्षा की खातिर,
हर युवा को राम बना जाओ।।४।।
     
हे राम! अब तुम आ जाओ।।
हे राम! अब तो आ जाओ।।


✍🏻 पवन सिंह"अभिव्यक्त"
मो. 9406601993

Wednesday, 15 March 2017

उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम और जनता को अपेक्षाये

                                    
उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामो की व्याख्या शब्दो में करना संभव नही हैं। देश के सबसे बड़े राज्य जिसमे जातिवाद की हवा रग-रग में बसती है, जहाँ सपा-बसपा-कांग्रेस जैसी अन्य पार्टियां वोट पाने के लिए राज्य में जातिगत माहौल बनाकर हिन्दू-मुस्लिम, अगड़े-पिछड़े, दलित, अमीर-गरीब की राजनीती करती हो, जिस राज्य की सरकार, देश की दशा-दिशा तय करती हो उस उत्तर प्रदेश की जनता ने बीजेपी को 300 से अधिक सीटे देकर इतिहास रच दिया। देश-विदेश के राजनितिक विश्लेषक हो या विपक्षी सभी हैरान, आश्चर्यचकित है, यहां तक की स्वयं मोदी व बीजेपी को भी इतनी विशाल जीत का भरोसा ना रहा होगा, परन्तु यह संभव हो पाया मोदी के अटल इरादों व अमित शाह की चुनावी कार्यप्रणाली के कारण।।
उत्तर प्रदेश का चुनाव परिणाम अब इतिहास का हिस्सा होंगे, जो की मोदी की केंद्र सरकार के मध्यावधि चुनाव जैसे है, जो की पिछले ढाई वर्षो में लिए गए फैसलों और नीतियों के परिणाम स्वरूप देश के सामने है। यह चुनाव बीजेपी संगठन व सरकार को नई ऊर्जा और नए कार्यो की पूर्ति हेतु मार्गदर्शित करेंगे, क्योंकि वर्तमान में भारत के आधे से ज्यादा हिस्से पर पंचायत निकाय से लेकर केंद्र तक बीजेपी की सरकारें है। किसी समय ऐसी स्थिति कांग्रेस की हुआ करती थी, परन्तु सत्ता को सबकुछ मानना कांग्रेस को भारी पड़ा और उसका खामियाजा उसे आज भुगतना पड़ रहा है। आज कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में अंतिम सांस गिन रही हैं। कुर्सी का स्वाभाव होता है कि सत्ता के साथ साथ वो अहम-घमण्ड को भी लेकर आती है जिससे बीजेपी को सावधान रहना होगा वरना कांग्रेस जैसी स्थिति होते देर ना लगेगी।।
बीजेपी की केंद्र तथा देश के आधे से ज्यादा हिस्से में सरकारे है, ऐसे समय आम जनता और सरकारों के बीच सामंजस के लिए मोदी की केंद्र सरकार तथा बीजेपी संगठन को एक ऐसी टीम प्रत्येक भाजपा शासित प्रदेशों में नीचे स्तर तक बनानी चाहिए जो जनता की मुलभुत आवश्यकताओ की जानकारी रख सके। जनता की सरकार से क्या अपेक्षाएं है? गरीब, दलित, शोषित, मजदुर, किसान, छोटे व्यापारी, बेरोजगार युवा, अगड़े-पिछड़े आदि की क्या समस्याएं है और उनका क्या समाधान हो सकता हैं??
उत्तर प्रदेश की जनता ने भ्रष्टाचार से गुंडाराज से मुक्ति, रोजगार सृजन, बिजली पानी आवास की उपलब्धता, किसानों को फसलो के उचित दाम और राज्य को विकास के नए आयाम गड़ने के लिए बीजेपी को महाविजय दिलाई है।
यूपी चुनाव में अन्य मुद्दों के साथ साथ हिंदुत्व का मुद्दा भी जोरो पर रहा, देश के सबसे बड़े राज्य का अपना धार्मिक महत्व भी है, इस कारण यहाँ हिन्दुओ के वोट बैंक को भटकाने की भी चर्चाएं रही। हिंदुत्व का ठप्पा लगाये सत्ता में आई बीजेपी को हिन्दुओ की भावनाओं को समझते हुए हिन्दू वोट बैंक जो कि इस बार खुलकर बीजेपी के समर्थन में आया और बीजेपी को वोट किया, अब बीजेपी को उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।।
बीजेपी तथा इसके नेताओ को इस बात को समझना होगा की लोगो ने वोट चाहे मोदी को देखकर दिया हो परन्तु लोगो को रोजमर्रा के कामो के लिए स्थानीय विधायक या सांसद के पास ही जाना पड़ता है, इसलिए इन नेताओं को अपने दायित्व को समझते हुए अपने कर्तव्य का पालन अच्छे से करना होगा ताकि जनता की अपेक्षाओं की पूर्ति की जा सके वरना जनता दूसरा विकल्प खोजने लगेगी।।


- पवन सिंह"अभिव्यक्त", मंदसौर
मो- 9406601993