Thursday, 14 September 2017

हिंदी हिन्द का है सम्मान





"हिंदी हिन्द की है पहचान,
हिंदी मेरे देश का ज्ञान,
पढ़ ले, सुन ले और समझ ले,
हे रे मेरे देश महान।।"

14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
               
वर्तमान में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में भी लगभग 45 करोड़ लोग हिंदी भाषी राज्यों में निवासरत हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी अर्थात 121 करोड़ में से 41% आबादी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने के मामले को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75% लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75% आबादी सहित विश्व के अन्य देशों जैसे पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालद्वीप, म्यामार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी,न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मारीशस, कनाडा, इंग्लैंड, अमेरिका आदि देशों को मिलाकर लगभग 80 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोल व समझ सकते हैं।
                 
वर्तमान में हिंदी के विश्व में बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वैसे यूनेस्को की 7 भाषाओं में हिंदी पहले से ही शामिल है। विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण लोगों में हिंदी के प्रति भी रुचि बड़ी है आज चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, रूस, इटली आदि देशो के मिलाकर लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम में किसी न किसी रूप में शामिल है। 

हमें आवश्यकता है हिंदी के बढ़ते प्रभाव व हमारे देश की मातृभाषा के सम्मान को बनाए रखने व हमेशा बढ़ाने की। हम भी आगे आएं, हमारे नित्य जीवन, दैनिक दिनचर्या में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें व लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करें। अन्य भाषाएं सीखने व पढ़ने के लिए पढ़ी जा सकती हैं परंतु उन भाषाओं को ही सब कुछ ना माने क्योंकि हमारी मातृभाषा हिंदी विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में से एक है इसका सम्मान यदि हम करेंगे तो ही विश्व हमारा, हमारे देश का व हमारी मातृभाषा का सम्मान करेगा।।

-पवन सिंह"अभिव्यक्त
मो. 9406601993

4 comments:

  1. बहुत ही खूब भाई साहब,,,आप सच्चे भारतीय हैं,, जय हिंद

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  2. यदि आपकी मौसी सूंदर है तो माँ को प्यार करना छोड़ देंगे क्या । उसी प्रकार कोई भी अन्य भाषा मातृभाषा से बढ़कर नही हो सकती अर्थात हिंदी से बढ़कर नही हो सकती ।

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