किसी भी राष्ट्र की उन्नति तब तक संभव नही है, जब तक उस राष्ट्र की युवा पीढ़ी के मन में अतीत का गौरव, भविष्य की चिंता और वर्तमान के दायित्वों का बोध ना हो? वह राष्ट्र कितना ही सामरिक उन्नति करले परन्तु यदि उस राष्ट्र की युवा आबादी के मन में देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का साहस नही है तो उस देश की सामरिक ताकत भी निरर्थक है??
कोई भी देश तब तक महान नही कहलाता जब तक उस देश की युवा पीढ़ी देश के लिये समय ना निकाले। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी भी देश पर समस्या आई है उसे युवाओं ने ही हल किया है।।
हमारी पवित्र हिन्दभूमि पर जन्मे भगवान श्री कृष्ण हो या श्री राम, वीर शिवाजी हो या महाराणा प्रताप, लक्ष्मी बाई हो या दुर्गावती, विवेकानंद हो या दयानंद, भगत सिंह हो या चंद्रशेखर आजाद, सावरकर हो या हो सुभाष।। सभी ने युवा रहते ही देश की तात्कालिक विषम परिस्थितियों से लोहा लिया और उन समस्याओं पर विजय प्राप्त की।।
वर्तमान में विश्व में सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश भारत है और यहाँ के युवा सारे विश्व में भारत की संस्कृति का लोहा मनवा रहे है, परन्तु फिर भी देश में युवाओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे देश के लिए चिंतन का समय नही हैं, वह "मै और मेरा" में उलझा हुआ है। उसके लिये देशभक्ति के मायने बदल गए हैं। जिन वीर पुत्रो ने भारत माँ की आजादी के लिये पुरा जीवन लगा दिया वो इनके आदर्श ना होकर आज के नकली हीरो अर्थात बॉलीवुड के हीरो इनके आदर्श बन गए है। ऐसे युवाओं की देशभक्ति केवल सोशल मिडिया पर ही दिखती है और इनका बस चले तो ये सोशल मिडिया पर ही देश की सारी समस्याओं को खत्म करदे। इनके लिए असल देशभक्ति अर्थात देश की समृद्धि, उन्नति आदि की वह चिंता नही करता है, क्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली जो मैकाले की शिक्षा प्रणाली के नाम से जानी जाती है और पश्चिम की फूहड़ सभ्यता को अपनाकर स्वयं को आधुनिक बनाने की होड़ में आत्मगौरव, आत्मस्वाभिमान खो चुका है। विवेकानंद जी उस पश्चिम में जाकर भारत की संस्कृति की पताका फहरा कर जब लोटे तो सर्वप्रथम भारत माँ की माटी से खुद को स्वच्छ किया और कहा कि मै इतने समय उस सभ्यता में रहा हूं उसका अंश मेरे भीतर ना आये इसलिए माँ भारती की रजकण से स्नान कर रहा हूँ।।
आज भारत के लाखों लाख युवाओं के आदर्श विवेकानंद जी कहा करते थे की हमे ऐसी शिक्षा प्रणाली का निर्माण करना है, जिससे देश के युवाओं के मन की शक्ति बढे, वह चरित्र सम्पन्न बने तथा स्वयं की बुद्धि से स्वयं के साथ-साथ देश का भी अच्छा बुरा देख पाये।
विवेकानंद जी देश के युवाओं को आह्वान करते हुए कहते थे की- "उठो मेरे शेरो ! इस भ्रम को तोड़कर की तुम निर्बल हो, तुम कुछ नही कर सकते। मेरे सिंह सपूतो तुम ही हो जो सबकुछ कर सकते हो, इस देश में पराधीनता की दिवार तुम ही ढहा सकते हो, इस देश से पश्चिम का सौम्य आतंक हो या अन्य क्रूर आतंक इसे तुम ही मिटा सकते हो।।
विवेकानंद जी ने युवा रहते ही भारत की संस्कृति की ख्याति सारे विश्व में पहुचाई थी, वो भारत माँ व भारत की संस्कृति को सबसे श्रेष्ठ मानते थे और कहा करते थे की "अगर प्रेम करना है तो भारत माता से करो, 50 वर्षो के लिये सारे देवी देवताओं को भूलकर केवल भारत माता की पूजा करो क्योंकि देश बचेगा तो मिटेगा कौन और देश मिटेगा तो बचेगा कौन??"
उनकी यह बात आज भी युवाओं के सामने है कि वर्तमान युवा पीढ़ी माँ भारती की उपासना करे और स्वयं के राग, द्वेष सब छोड़कर, क्षेत्रवाद, भाषावाद की लड़ाई को त्यागकर भारतमाता की पीड़ा, माता के दुःख-दर्द (आतंकवाद, घुसपैठ, भुखमरी,अशिक्षा आदि)को मिटाने के लिए आगे आये और भारत को वैभव संपन्न,उन्नत और पुनः विश्वगुरु बनाये।।
- पवन सिंह, मन्दसौर
मो. 09406601993

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