सिंहल के राजा गंधर्व और रानी चम्पावती के घर एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया पद्मिनी।
राजकुमारी पद्मिनी नाम के के अनुरूप ही कोमल, अत्यंत सुन्दर वर्ण और बुद्धि कौशल में परिपूर्ण कन्या थी। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो उनकी शादी के लिये राजा गंधर्व ने एक स्वयंवर का आयोजन किया जिसमें कई राज्यों के राजा आये जिसमे मेवाड़ राज्य के राजा रावल रत्नसिंह जी भी पधारे। रावल रतनसिंह जी ने उस स्वयंवर को जित लिया और राजकुमारी पद्मिनी ने भी उनको अपना पति सहर्ष स्वीकार किया।। इस प्रकार राजकुमारी पद्मिनी चित्तोड़ की महारानी बनकर आई।
रानी पद्मिनी इतनी सुंदर थी की उनकी सुंदरता की तारीफे केवल मेवाड़ राज्य ही नही अपितु राज्य के बाहर के भी लोग किया करते थे। उनका सौन्दर्य यायावर गायको (भाट/चारण/कवियों) के गीतों का विषय हुआ करता था और रानी की सुंदरता के गीतों का स्वर इतना बड़ा की उसकी आवाज दिल्ली तक जा पहुँची, उस समय वहां अत्यंत क्रूर और वहशी सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी का शासन था जिसे पराई और सुंदर औरतो को अपने हरम में रखने में मजा आता था। रानी पद्मिनी को भी अपने हरम में शामिल करके अपनी पिपासूता शांत करने की चाह लिए खिलजी ने चितौड़ को चारों और से घेर लिया और कई महीनो तक घेरे रखा, दोनों ओर से युद्ध चलता रहा और अंत में खिलजी ने पापी चाल चलते हुए राजा रत्नसिंह को सन्देश भिजवाया की वो केवल रानी को एक बार देखना चाहता है उसके बाद वो दिल्ली वापस लौट जायेगा। बहुत गहरी मंत्रणा के पश्चात् खिलजी को निशस्त्र अंदर आने कि अनुमती दे दी और खिलजी के लिए एक विशेष झरोखे का इंतजाम किया गया जहाँ से उसने रानी पद्मिनी को दर्पण में देखा, जो खिलजी रानी की सुंदरता का बखान सुनकर ही उसे पाने के लिए लालायित था वो रानी को देखकर पगला हो उठा परन्तु निशस्त्र होने तथा अकेला होने के कारण उसने कुछ ना किया, उधर भोले इंसान राजा रत्नसिंह जी उस खिलजी की बातों में आ गए और बाते करते करते किले के सातों दरवाजो को पार कर गए। जैसे ही राजा सातवे दरवाजे से बाहर आये उन्हें खिलजी के सैनिकों ने कैद कर लिया और एक विशेष कैदखाना बनाकर उन्हें रखा गया।
राजा को कैद करने के बाद खिलजी ने शर्त रखी कि रानी को हमे दे दो और राजा को ले जाओ।
मेवाड़ की आन बान शान और राजपूतो का सम्मान रानी पद्मिनी को लेकर ऐसी बात सब आग-बबूला हो गए, पर करते भी तो क्या सेना कम थी, राजा उसके पास कैद थे।
मेवाड़ की महारानी पद्मिनी जो सौन्दर्य की अप्रतिम मूर्ति थी साथ ही बड़ी ही चतुर और बुद्धि वाली नारी थी, उसने खिलजी को सन्देश भिजवाया की "मै अकेली नही आऊँगी मेरे साथ मेरी 700 दासियाँ भी आयेगी और मुझे राजा जी से अंतिम बार अकेले में मिलना है इसलिए मेरी डोली सीधे उनके तंबू में पहुचेगी।" खिलजी बहुत प्रसन्न हुआ और उसने हाँ करदी। इधर महल में डोलियां सजाई गई, जो डोली रानी के लिए सजी थी उसमें रानी का 12 साल का भतीजा बादल बैठा, इसी प्रकार प्रत्येक डोली में दासी की जगह 2-2 सैनिक बैठे और डोली को उठाने वाले कहार भी सैनिक ही थे।
रानी की डोली जिसमे बादल बैठा वो सीधे राजा के तम्बू में जाकर रुकी और उसमें से बादल के बाहर निकलते ही हर हर महादेव का उद्घोष हुआ और सारे सैनिक भूखे सिंहो की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े सेना कुछ समझ पाती उससे पहले राजा को छुड़वा लिया गया। भयंकर युद्ध हुआ खिलजी की सेना परास्त हुई और उसे वापस दिल्ली लौटना पड़ा।
रानी की चातुर्यपूर्ण योजना से खिलजी की मिट्टी पलीद हुई उसे मुँह की खानी पड़ी पर वो चुप ना बैठा। कुछ समय बाद पुनः चितौड पर आक्रमण कर दिया, इस बार युद्ध अति भयंकर था, राजपूत वीरो ने वीरता से लड़ते हुए खिलजी की सेना से लोहा लिया पर कब तक वो विशाल सेना के सामने टिक पाते, राजपूत सैनिक गिनती के बचे थे और किले के अंदर भय व्याप्त हो गया कि अब क्या होगा?
26 अगस्त 1303 की सुबह चित्तोड़ के लिये नई थी, उस सूर्योदय से पहले ही सारा चितोड़ नहा कर नए वस्त्र धारण करके तैयार था। एक विशाल हवन कुंड का निर्माण किया गया था, जिसकी अग्नि सबको अपने में समाने के लिए तैयार थी, राजपूत वीर सर पर केसरिया बाना पहने, हाथो में शस्त्र लिए और मुँह में तुलसी माँ का पत्ते लिए तैयार खड़े थे। जैसे ही शंखनाद हुआ किले के दरवाजे खोल दिए गए, राजपूत वीर सिंह की भांति दुश्नमो को काटते हुए आगे बढ़ रहे थे, खिलजी की सेना गाजर-मूली की तरह कट कटके नीचे गिर रही थी, पर संख्या में कम योद्धा कब तक उस विशाल सेना के सामने टिक पाते और अंत में जब सारी सेना खत्म हो गई तो खिलजी बड़ा गर्व महसूस करता हुआ किले में प्रवेश हुआ पर अंदर का नजारा देखकर सहम सा गया, उसके बढ़ते कदम रुक से गये, अग्नि की निकलती लपटों ने उसे सोचने के लिए मजबूर कर दिया क्योंकि जिस रानी को पाने का सपना लिए वो अंदर प्रवेश हुए थे वो रानी पद्मिनी अपने साथ 16000 क्षत्राणियों को लेकर "हर हर महादेव" "एकलिंग जी की जय" का उद्घोष करती हुए अग्नि में समा गई। उन 16000 क्षत्रिय नारियो ने स्वयं को होम कर दिया पर मेवाड़ की, चितोड़ की और राजपूताने के आन-बान-शान और सम्मान पर विदेशी और पापी-क्रूर आताताई खिलजी की नजर ना पड़ने दी।
चित्तौड़गढ का किला
ऐसा अमरता का, सम्मान का, गौरव का इतिहास लिए खड़ा वो चितोड़ आज भी उन वीरांगनाओ का बखान करते नही थकता, वो सम्मान की आग आज भी राजपूती खून में भरी पड़ी हैं इसीलिए आज भी जब भी कभी देश के सम्मान पर चोट होती है राजपूत सबसे पहले खड़े होते है!
धन्य ऐसी राजपूती और धन्य हम जो इस राजपूती में जन्मे !!!
- पवन सिंह "अभिव्यक्त"
मो- 09406601993










