Wednesday, 24 July 2019

लक्ष्य तक पहुँचे बिना राही, राह में विश्राम कैसा??


ताकत जुटा, हिम्मत को आग लगा,
फौलाद का भी बल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा थमा सा, वो भी चल निकलेगा।
कोशिश कर हल निकलेगा,
आज नही तो कल निकलेगा।।।

🙏शुरुआत में ही आप सब पाठकों से क्षमा चुकी लेख थोड़ा बड़ा है, कृपया इसे बार जरूर पढ़ें।।🙏

   सफलता किसी भी छोटे या गलत रास्ते की मोहताज नहीं होती। सफलता प्राप्त करने के लिए स्वयं को तपाना पड़ता है, सफलता की राह में स्वयं को अनगिनत मुश्किलों से लड़कर पार पाना होता है, इसलिए ईमानदारी पूर्वक, सही दिशा में लगातार की गई "मेहनती ही सफलता की कसौटी" मानी जाती है।
   सफलता यकायक मिलने वाला फल नही है, वह तो उस विशाल पेड़ के समान है जो बीज रूप में जब मिट्टी में दफन होता है तब से लेकर सूरज की तपन, बरसता पानी, काली अंधियारी रातों में अकेला ही मैदान में खड़ा रहता है, तभी तो वह पेड़ बन पाता है, उसी के साथ मिट्टी में गया वो बीज जो इन अवरोधों को ना सहकर स्वयं को खत्म कर लेता है और राह में ही धराशायी हो जाता है।।
   आज ही कि एक घटना ने यह लिखने पर मजबूर कर दिया और जीवन मे एक बार पुनः यह महसूस हुआ कि कोई भी मंजिल छोटी या बड़ी नही होती बस उसको प्राप्त करने के लिए लगातार मेहनत की आवश्यकता होती है।।

    एक नन्हा सा जीव, जो जीवन जीने के लिए इस पृथ्वी पर रोज ही अनगिनत अवरोधो से लड़ता रहता है, और किस क्षण उसका जीवन समाप्त हो जायेगा इसका भी उसे अहसास नही होता। उसका नाम है - मकोड़ा (cuddle)।


   आज जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो वो एक दीवार पर चढ़ने की कोशिश में लगा हुआ था, मेरी नजर पड़ने से भी पहले से शायद। ऊपर जाने के लिए जतन कर रहा वो मकोड़ा आधे रास्ते ही गया था कि फिसलकर नीचे गिर गया, एक बार ओर चढ़ने की कोशिश की और जैसे तैसे स्वयं को संभालता हुआ, फिसलन पर बचता, पैरों को दीवार पर कसकर पकड़े हुए पिछली बार से तनिक ही ऊपर गया होगा कि वापस नीचे आ गया। मेने सोचा अब यह नही चढ़ने वाला परन्तु उसने एक बार ओर कोशिश प्रारंभ की ओर इस बार भी वो आधे मार्ग से वापस नीचे आ गया। नीचे आकर उसने रास्ता बदल लिया मुझे लगा कि थक कर यह चला गया पर अगले ही क्षण जब उसे देखा तो वो दूसरे मार्ग से दीवार पर चढ़ा जा रहा था, धीरे-धीरे नन्हे-नन्हे कदमों से चलता हुआ वो नन्हा जीव कुछ सेकंड के बाद ऊपर पहुँच गया, वहां से उसमें पुनः रास्ता बदला और उस स्थान तक पहुँचा जिसके लिए उसमें चढ़ाई शुरू की थी।।

अपनी मंजिल को प्राप्त करके वह नन्हा जीव कितना प्रसन्न हुआ होगा इसका अंदाजा मैं, आप या हम कोई भी नही लगा सकते, पर एक सीख जो आज तक हम सुनते आए है कि मेहनत यदि ईमानदारी पूर्वक की गई हो तो हर मंजिल की ऊंचाई छोटी पड़ जाती है।।
    नन्हे जीव के इस बार बार अफलता के बाद के सफल प्रयास को देखकर हम भी प्रेरणा ले सकते है कि जीवन मे कोई भी मंजिल, कोई भी लक्ष्य दूर या असम्भव नही होता, जरूरत है तो उस तक पहुँचने की रणनीति की।।
    मैं यह नही करता सकता??
    मैं इस लायक नही हूं??
    मेरे पास सुविधाओं की कमी है??
    यह मेरे बस का नही है??
    " ये बस है क्या??"
    इसी भ्रम को तोड़ना है, इसी वहम को मन से निकलना है और स्वयं को यह महसूस करवाना है कि मैं क्या हूँ?? मैं क्या कर सकता हूँ??? और यह होगा केवल ओर केवल मेहनत से वो भी अनथक, अथक।।।
 अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए, सफलता प्राप्त करने के लिए, स्वयं को यदि तपाने का, उस लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव पैदा करके उस लक्ष्य को मार्ग में ही जीने का हुनर यदि हमने प्राप्त कर लिया तो वो लक्ष्य, मंज़िल मिलने के बाद जो खुशी, जो प्रसन्नता आपको होगी, उसका मोल आप ही समझ सकोगे ओर तब आपको अहसास होगा कि ""कोई भी लक्ष्य छोटा या बड़ा नही होता।।""

पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद!! 

अच्छा, बुरा जैसा भी लगा हो कमेंट करके जरूर बताए, और शेयर जरूर करे।।

आपका:- 
Pawan Singh ABHIVYAKT


              ✍-पवन सिंह "अभिव्यक्त"

Thursday, 7 March 2019

आंतरिक नीति में फेल होता भारत


F16 से दागी जाने वाली एमराम मिसाइल के टुकड़े

 पुलवामा आतंकी हमले के बाद जो कुछ भी घटित हुआ, उसे देश की बाह्य नीति, विदेश नीति व आंतरिक नीति तीनों धुरियों पर एक साथ देखा जा सकता है।
  सैनिकों के काफिले पर कायराना हमले के बाद जब जेश- ए- मोहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी, आतंकी डार के वीडियो संदेश जिसमें वह गजवा- ए- हिंद का उल्लेख कर चुका था, तब किसी और की यह दलील की इस घटना के सूत्रधार की जानकारी नहीं है यह फालतू बात थी??  जिसका मुखिया अजहर जिसे पाक आर्मी की रक्षा में रखा गया है, पता होते हुए भी पाकिस्तान का यह कहना कि 'भारत की सरकार सबूत दे हम कार्रवाई करेंगे।' वह भी तब, जब जैश ने स्वीकार किया की हमला हमने करवाया।।
तभी देश में 26 जनवरी के बाद सोई हुई देशभक्ति जगी। बदला- बदला- बदला की आवाजें मुखरित होने लगी।  सप्ताह भर बाद विपक्षी पार्टियां भी अपनी असलियत पर आई और वह भी जवाब मांगने लगी कि आखिर सरकार क्या कर रही हैं? उसे जवानों की शहादत का मर्म नही है??
ओर अंततः 26 फरवरी को भारतीय एयरफोर्स ने नियंत्रण रेखा को पार करके जब एयर स्ट्राइक की, जिसका उल्लेख सबसे पहले पाकिस्तान की तरफ से हुआ। इस बदले के बाद देश का हर नागरिक सरकार व एयरफोर्स की बढाई करते नहीं थक रहा था, इस प्रतिकार से दुनिया ने देखा कि अब भारत पहले वाला नही है, यह प्रतिकार करना जानता है, यह अब डर से, ख़ौफ़ में नही बैठेगा परन्तु अगले दिन हमारी एयरफोर्स का एक जवान अभिनंदन उनकी बॉर्डर में चला गया।

 पाकिस्तान ने जो हमेशा झूठ बोलता रहा है, एयर स्ट्राइक के सबूत मिटा कर, शांति की दुहाई देता हुआ अभिनंदन को छोड़ने का ढोंग किया परंतु वास्तव में उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव इतना था कि जेनेवा समझौते की शर्तों, उसी दिन oic की बैठक में भारत को बतौर अतिथि बुलाना, अमेरिका, फ्रांस,  ईरान, सऊदी अरब आदि के दबाव के बाद अभिनंदन को छोड़ना पड़ा। ओर इस प्रकार यह थी भारत की "विदेश नीति की जीत"

हमेशा की तरह इस बार भी भारतीय सेना का और देश का मनोबल ऊंचा उठा हुआ था। सरकार विश्व समुदाय के सामने पाकिस्तान और उसके आतंकियों पर कार्रवाई के लिए दबाव बना रही थी, उसे घेर रही थी, जनता में उत्साह था कि हम अब किसी से डरने वाले नही और गर्व था उन वीरो पर जिन्होंने माँ भारती को छिन्न भिन्न करने वालो को सबक सिखाया था, तभी हमारे देश में मौजूद जयचंदि लोगों जो राजनीतिक पार्टियों के बड़े पदों पर बैठे हैं ने अपनी राजनीतिक रोटियों को सेंकने के लिए, भारतीय सरकार के विरोध ओर सरकार को नीचा दिखाने वाले बयानों के साथ- साथ देश की रक्षा करने वाली सेना पर भी शक की लकीर खींच दी।

2011 में जब अमेरिका ने ओसामा को मारा था तब राष्ट्रपति ओबामा की घोषणा की "हमने हमारे दुश्मन को मार गिराया, तब अमेरिका के सारे राजनेताओं ने एक स्वर से सरकार की प्रशंसा की थी।" महीनों क्या आज सालों बाद भी किसी नेता ने ये नही कहा कि कहा है ऑपरेशन के फोटो या वीडियो?? किसी ने शक नहीं किया था।।
   परन्तु जब एयर स्ट्राइक की जानकारी पाकिस्तान की तरफ से आई हो, जब देश की तीनों सेनाओं के अधिकारियों ने जानकारी दी हो, उसके बाद भी उस सेना पर शक करते हुए सबूत मांगना किस बात का मानसिकता का परिचायक है?
बाह्य नीति और विदेश नीति में सफल हिंदुस्तान ऐसे राजनेताओं की करतूतों के कारण हमेशा "आन्तरिक नीति" में असफल हो जाता है।  जो पाकिस्तान सबूत नहीं दे पा रहा था वही पाकिस्तान इन नेताओं के बयानों को सुर्खियों में रखकर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है।

देश की जनता को यह समझना होगा कि जो लोग वर्षों से कुछ नहीं कर पाए थे वे अब जब सरकार व सेना कुछ अच्छा कर रही है तो वे क्यों इन पर उंगली उठा रहे हैं?? 
क्यों उन्हें भारत की सेना पर शक हो रहा है??
देश की जनता को सोचना होगा कि इनके रहते देश की सुरक्षा कैसे होगी?
कैसे यह देश सुरक्षित हो पाएगा??
कैसे हम लोग बचेंगे??
कैसे यह देश बचेगा और जब देश नहीं बचेगा हम कैसे बचेंगे? ये राजनेता कैसे बचेंगे?
 ये लोग कहां जाएंगे?? जब लोग नहीं बचेंगे तो अपनी राजनीतिक रोटियां ये कैसे और कहा सेकेंगे?? 
देश की रक्षा हर व्यक्ति, जिसमे आम-खास हो या राजनीतिक पार्टियों के व्यक्ति हो सभी का धर्म होना चाहिए, देश की रक्षा केवल सरकार या सेना का ही काम नही है। यह कर्तव्य है हमारा भी की हम भी इसके अच्छे के बारे में सोचे।।

- पवन सिंह"अभिव्यक्त", मंदसौर
https://www.youtube.com/channel/UChjOCU1Xl5LuiFL4-XgaMCg

Monday, 18 February 2019

पुलवामा हमला में सुलगते कुछ यक्ष प्रश्न??

              

आम चुनाव से ठीक पहले पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर किये गए आत्मघाती हमले ने पूरे देश को आक्रोश से भर दिया है। हर कोई पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए आतुर हैं तथा पूरे देश और सभी राजनीतिक दलों द्वारा केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह कार्रवाई करें,सारा देश आपके साथ हैं।
    
   दबाव जायज भी हैं, क्योंकि पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद अब पूरी दुनिया के लिए नासूर बन चुका है। लगातार आतंकी घटनाओं के बाद उनकी जिम्मेदारी पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठनों के आकाओं द्वारा लिए जाने के बाद भी पाकिस्तान यह कह कर पल्ला झाड़ लेता है कि "हम भी इसी आतंकवाद से परेशान हैं तो हम इसे पनाह क्यों देंगे?"
 हालिया घटनाक्रम में जब यह साफ हो गया कि यह घटना आतंकी मसूद अजहर के आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद ने की हैं जो पाकिस्तान में बैठा है, तब उस पर कार्यवाही करने के बजाय वहां के विदेश विभाग के प्रवक्ता का यह कहना कि 'हमने तो इस संगठन पर कार्रवाई 2002 से ही कर रखी हैं।' सारी दुनिया जानती हैं कि क्या कार्रवाई पाकिस्तान ने उस पर करी हुई हैं ?? 

    पाकिस्तान प्रेरित इन आतंकी घटनाओं के साथ ही कुछ यक्ष प्रश्न है जो कि दुनिया के सामने नहीं आ पा रहे हैं जो कि तत्काल आने चाहिए:- 
1. पुलवामा हमला बिना स्थानीय लोगों के संभव नहीं हो सकता। वे कौन हैं?? 

2. लगभग 300 किलो विस्फोटक उस स्थान पर पहुंचा कैसे?? 

3.विस्फोटक के लिए इतना धन कहां से और किसने उपलब्ध कराया था??

4. खुफिया एजेंसियों की नाकामयाबी को भी माना जाए तो भी यह खबर उन तक कैसे गई कि सेना का काफिला उसी रोड से, उस समय निकलेगा??

5. अलगाववादी नेताओं की तरफ सेे अभी तक कोई बयान क्यों नहीं आया??

6. छोटी सी घटना पर रोना रोकर कश्मीर में पत्थरबाजी गैंग रोड पर आती हैं, इस  दर्दनाक घटना के बाद भी कश्मीर में इस घटना के लिए कोई सड़क पर नही आया.. क्यो.??? यह किस बात का परिचायक है??

7. पाकिस्तान की ओर से घटना के 4 दिन बाद तक कोई आधिकारिक बयान, संवेदना (प्रधानमंत्री राष्ट्रपति विदेश मंत्री आदि) नहीं. किस डर से यह लोग बयां नहीं दे पा रहे हैं??

   ऐसे अनगिनत प्रश्न है जिनके जवाब यदि खोजे जाए तो उसके मूल से कश्मीर समस्या का संभवत हल निकलकर आ जाए। हिजबुल, जैश जैसे आतंकी संगठनों कि कश्मीर में मदद करने वाले की पहचान करके वह सार्वजनिक होना चाहिए।  अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा हटाने का कार्य बहुत पहले हो जाना चाहिए था। जो जेड प्लस सुरक्षा उन्हें उपलब्ध कराई गई, वह सेना के काफिले को कराई जानी चाहिए ताकि देश के दूरस्थ, अति संवेदनशील इलाकों में भी सेना के जवान बिना किसी डर के आ जा सके।
    वास्तव में इस घटना के बाद यह माना जाए कि खुफिया तंत्र की नाकामी थी या उसकी सूचना पर भी गौर नहीं किया गया तो भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो उसके लिए कश्मीर में पैर जमा चुके अलगाववाद और आतंकवाद को जड़ से खत्म करना होगा। "फोड़ा जब नासूर बन जाए, तब दवाई से काम नहीं चलता, उसको जड़ से खत्म करना होता है।" अलगाववाद आतंकवाद की जड़ो को खोद कर निकाला जाना चाहिए, ताकि कश्मीर मे शांति व्यवस्था कायम हो सके।
हमारे राजनीतिज्ञों को समझने की जरूरत है कि कश्मीर को सही राह पर लाए बिना पाकिस्तान को सबक नहीं सीखा जा सकता। इस हेतु कश्मीर में धारा 370 और धारा 35a को वहां से खत्म करना होगा ताकि इन धाराओं के नाम पर मौज करने वालों की पहचान हो सके और जनता को होने वाले दुख का आभास सारे देश को हो सके।
 
ऐसे समय जब सारा देश केंद्र सरकार के साथ हैं, सरकार को विशेष सत्र के माध्यम से इन धाराओं को हटा देना चाहिए जो संविधान में स्थाई प्रकृति की है, ताकि कश्मीर की आतंकी अलगाववादी ताकतों को ओर आगे बढ़ने से तत्काल रोका जा सके।।

-पवन सिंह "अभिव्यक्त"

Thursday, 7 February 2019

बंगाल में वाम और तृणमूल कांग्रेस की छटपटाहट


     सियार का जब अंत समय आता है तो वो जिंदा रहने के सारे जतन करता है।
   तीन दशक तक सत्ता में रहने वाले वामदल अस्ताचल में चले गए, 'वाम जिंदा है' यह जनता को दिखाने के लिए वामदलों ने मिलकर कोलकाता के ब्रिगेड मैदान पर एक बड़ी रैली का आयोजन किया था, परन्तु उसकी उम्मीदों पर पानी तब फिरा जब उसी दिन देर शाम कोलकाता में सीबीआई की टीम के अधिकारियों को पश्चिम बंगाल पुलिस ने हिरासत में लिया। वामदल इस रैली के माध्यम से स्वयं के होने की पुष्टि जनता को कराना चाह रहे थे परंतु इसी बीच शारदा चिटफंड घोटाले के नाम पर हुए हाइवोल्टेज ड्रामे ने प्रदेश और देश की जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया जिससे लोगो का ध्यान वामदलों की रैली की तरफ नही गया।
    पश्चिम बंगाल में अपनी खोई जमीन तलाश करते वामदल प्रतिवर्ष इस प्रकार की रैली का आयोजन करते है जो इस बार तीन वर्षों के बाद हुई है। रैली की अनुमति नही मिलने के नाम पर लगातार राज्य सरकार पर उंगली उठाने वाले वाममोर्चे ने अपनी रैली में पश्चिम बंगाल सरकार पर किसी भी प्रकार का आरोप नही लगाया, वही दूसरी तरफ बीजेपी के राज्य में बढ़ते जनाधार से चिंतित ममता दीदी की सरकार ने बीजेपी नेताओं की राज्य में रैली की अनुमति ना देकर आग में घी डालने का काम किया। यदि अनुमति दे दी जाती तो बीजेपी के नेता अपनी रैली कार्यक्रम करके चुपचाप निकल जाते ना राज्य में, ना देश मे किसी प्रकार का हल्ला होता, ना जैसा माहौल अभी अभी खराब हुआ वैसा माहौल खराब होता परन्तु ममता ने पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह फिर उप के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन आदि को अनुमति ना देकर स्वयं के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा काम किया।
    वाममोर्चे की रैली वाले दिन ही योगी आदित्यनाथ की प्रस्तावित रैली जिसमे योगी को राज्य में नही आने दिया तब योगी ने उस रैली को फोन से ही सम्बोधित करके  तथा अगले दिन हेलीकॉप्टर से आने की अनुमति नही होने पर भी बाय रोड जाकर उस जनसैलाब को सम्बोधित करके यह दर्शा दिया कि ममता और उसकी सरकार से अब हम डरने वाले नही है।
    कभी वाम के गढ़ रहे बंगाल को ममता ने ध्वस्त किया था अब शायद ममता को अपना किला बचाने की जद्दोजहद वाममोर्चे से ना करके बीजेपी से करना पड़ रही है तभी वो सीधे ही बीजेपी के बड़े नेताओं को प्रतिदिन आड़ेहाथों ले रही है। कही ममता को अपना मोर्चा ध्वस्त होने का डर तो नही सता रहा है? जिसे बचाने के लिए सीबीआई जैसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी और बीजेपी नेताओ के साथ सीधे दो दो हाथ करने जैसी बचकाना हरकत वो कर रही है। वही लगातार अनुमति नही मिलने के बाद मिली अनुमति पर ब्रिगेड मैदान की वामदलों की रैली में ममता सरकार पर कुछ भी ना कहना कहि यह संदेश तो नही की अनहोनी की स्थिति में हम आपके साथ है। (वाममोर्चा+ ममता) वैसे भी गठबंधन की सुबसुगाहट और उससे बनने बिगड़ने की प्रक्रिया निरन्तर चल रही है उसी में वामदलों का tmc को यह कोई संदेश तो नही?? यह सब बातें समय के गर्भ में है जो समय ही बताएगा, जिसके बारे में राज्य और देश की जनता को कुछ ही समय मे पता चल ही जायेगा।
    जो भी हो 2019 का चुनाव मजेदार होने वाला है एक व्यक्ति को रोकने के लिए देश के सारी राजनीतिक पार्टियों के नेता इक्कठे हो रहे है और मजेदार बात ये है कि इस गठबंधन में शामिल सभी नेता स्वयं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार माने हुए है, देखते है क्या होता है, पर जो भी होगा देश के हित, मातृभूमि के सम्मान के लिए ही होगा।।

-पवन सिंह "अभिव्यक्त"