Saturday, 30 September 2017

17 के 17 रावण का अंत करे...

17 के 17 रावण

दुर्गा पूजा हमारे देश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो संपूर्ण देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

दुर्गा पूजा पर हमारे मालवांचल क्षेत्र में मां दुर्गा की आराधना के लिए गरबा नृत्य का आयोजन गांव-गांव, गली-गली में किया जाता है, जिसमें बालक-बालिकाएं, महिला-पुरुष, क्षेत्र के सभी लोग बढ़-चढ़कर, सज-धजकर हिस्सा लेते हैं, जिसका समापन इस वर्ष आज ही हुआ है।
समय के साथ-साथ बढ़ते आधुनिकीकरण के नाम पर मां दुर्गा के पूजा स्थल अर्थात गरबा को भी व्यापार बना लिया गया। गरबा नृत्य कार्यक्रमों में, पंडालों में फूहड़ता परोसी जाती हैं जो ठीक नहीं है। दुर्गा पूजा के बाद दसवे दिन दशहरा अर्थात बुराई के प्रतीक रावण को जलाया जाता है, बुराई का अंत किया जाता है।

आधुनिकता के बीच इस दशहरे पर मां भारती की रक्षा, सेवा, स्वच्छता का संकल्प लेकर हमें गंदगी रुपी रावण को जलाकर स्वच्छता रूपी नया सवेरा लाने का संकल्प प्रत्येक भारतीय को लेना चाहिए। वह स्वच्छता चाहे गली-मोहल्लों की हो या मन की।

मन के रावण बहुत है जिनका अंत करके हम हमारे आसपास के क्षेत्र को अयोध्या बना सकते है, जिसमे सब राम निवास करते हो।। ऐसे मन के रावण है👇🏻

1. बेरोजगारी
2. असमानता
3. अशिक्षा
4. गरीबी
5. आतंकवाद
6. घुसपैठ
7. भ्रष्टाचार
8. युवाओ में नशाखोरी
9. बाल विवाह
10. दहेज प्रथा
11.बालिका भ्रूण हत्या
12. जातिवाद
13.अश्पृश्यता की समस्या
14. भेदभाव
15.अंधविश्वास
16. रूढ़िवादिता
17. युवा में देशप्रेम की कमी

इस वर्ष अर्थात 2017 में 17 रावण का अंत अगर हम कर पाए तो तो ये नवरात्रि ओर दशहरा सार्थक होगा।
मन व्याप्त इन रावणो को नष्ट करके नए भारत के निर्माण के लिए प्रत्येक भारतवासी को आगे आना चाहिए, जिससे भारत माता को विश्वगुरु के सिंहासन पर शीघ्रता से पहुँचाया जा सके, जहां बैठकर माँ सारे विश्व का मार्गदर्शन कर सके।


-पवन सिंह "अभिव्यक्त", दोरवाडा, मंदसौर

Thursday, 21 September 2017

माँ दुर्गा का दूसरा रूप- ब्रह्मचारिणी

जय माता दी


नवरात्रि में मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली।

देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
आत्म शांति, सदाचार, संयम आदि गुणों को प्राप्त करने के लिए माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान मनन करना चाहिए।। माँ स्वयं त्याग तपस्या की मूर्ति है, जो अपने भक्तों को इच्छित वरदान देती है।।

मंत्र:-
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अभिव्यक्त मंदसौर

✍🏻 पवन सिंह "अभिव्यक्त"

नवरात्रि के प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री की आराधना


जय माता दी

वर्षभर के पश्चात पुनः मां दुर्गा की शक्ति की आराधना का पर्व आ ही गया। नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का भिन्न-भिन्न तरीके से पूजन अर्चन करते हुए मां की आराधना भक्तों द्वारा की जाती है और मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए जाते हैं। मां दुर्गा के विभिन्न रूपों में प्रत्येक रूप का वर्णन प्रतिदिन प्रस्तुत है:- 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
चित्र:- माँ काली मंदिर, कालीघाट, कोलकाता

आज नवरात्र का पहला दिन है। प्रथम दिवस मां दुर्गा को "शैलपुत्री" रूप से जाना जाता है और मां दुर्गा की शैलपुत्री रूप की पूजा अर्चना की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म होने के कारण आप "शैलपुत्री" कहलाई।

"मां शैलपुत्री" हिमालय जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति की प्रतीक हैं, मां दाएं हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल धारण किए हुए हैं।
जीवन में दृढ़ता लाने के लिए मां शैलपुत्री का पूजन अर्चन भक्त करते हैं।

मंत्र:-
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

माँ शैलपुत्री आपके जीवन मे दृढ़ता लाये और जीवन को स्थिर करते हुए आपको सदैव स्वस्थ प्रसन्न रखे।।



✍🏻पवन सिंह"अभिव्यक्त"

Thursday, 14 September 2017

हिंदी हिन्द का है सम्मान





"हिंदी हिन्द की है पहचान,
हिंदी मेरे देश का ज्ञान,
पढ़ ले, सुन ले और समझ ले,
हे रे मेरे देश महान।।"

14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
               
वर्तमान में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में भी लगभग 45 करोड़ लोग हिंदी भाषी राज्यों में निवासरत हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी अर्थात 121 करोड़ में से 41% आबादी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने के मामले को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75% लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75% आबादी सहित विश्व के अन्य देशों जैसे पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालद्वीप, म्यामार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी,न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मारीशस, कनाडा, इंग्लैंड, अमेरिका आदि देशों को मिलाकर लगभग 80 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोल व समझ सकते हैं।
                 
वर्तमान में हिंदी के विश्व में बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वैसे यूनेस्को की 7 भाषाओं में हिंदी पहले से ही शामिल है। विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण लोगों में हिंदी के प्रति भी रुचि बड़ी है आज चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, रूस, इटली आदि देशो के मिलाकर लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम में किसी न किसी रूप में शामिल है। 

हमें आवश्यकता है हिंदी के बढ़ते प्रभाव व हमारे देश की मातृभाषा के सम्मान को बनाए रखने व हमेशा बढ़ाने की। हम भी आगे आएं, हमारे नित्य जीवन, दैनिक दिनचर्या में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें व लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करें। अन्य भाषाएं सीखने व पढ़ने के लिए पढ़ी जा सकती हैं परंतु उन भाषाओं को ही सब कुछ ना माने क्योंकि हमारी मातृभाषा हिंदी विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में से एक है इसका सम्मान यदि हम करेंगे तो ही विश्व हमारा, हमारे देश का व हमारी मातृभाषा का सम्मान करेगा।।

-पवन सिंह"अभिव्यक्त
मो. 9406601993