Monday, 27 February 2017

चंद्रशेखर आजाद की शहादत के अनसुलझे प्रश्न?????

चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर ताप हूँ मैं,
फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घाष हूँ मैं।
कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर,
चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ संताप हूँ मैं।
आजाद हूँ मै.....
देवनिर्मित भारतभूमि सबसे श्रेष्ठ और पुण्यफल देने वाली भूमि है। विश्व में केवल यही भूमि है जिसे माता कहा जाता है,अन्य किसी देश को माता नही कहा जाता है। भारत यह कोई भूमि का टुकड़ा नही हैयह तो शाश्वत जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है। इस भारतभूमि पर समय-समय पर कई वीर पुत्रो ने जन्म लेकर माता की रक्षा के लिए स्वयं के प्राणों की बाजी लगा दी।
ऐसे ही एक वीर क्रांतिकारी थे- चंद्रशेखर आजाद। देश के गुलामी के कालखंड में 23 जुलाई 1906  को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में भाबरा नामक गाँव में पिता पंडित सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी के घर जन्म हुआ था।

उस कालखंड में देशभक्ति का ज्वार चरम पर था जगह जगह देश की आजादी के लिए आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियां चलती रहती थी। 15 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर वेद पाठ की पढाई के लिए इलाहबाद गये जहाँ एक आंदोलन में "वन्दे मातरम" और "भारतमाता की जय" के उस समय प्रतिबंधित नारे लगाने के जुर्म में इन्हें जज के सामने पेश किया गया जहाँ नाम पूछने पर इन्होंने अपना नाम "आजाद" बताया और तभी से आप चन्द्रशेखर आजाद कहलाये और उसी समय प्रण लिया था कि मरते दम तक कभी पुलिस के हाथ नही आऊँगा तो कभी भी पुलिस के हाथ ना आये।आजाद का क्रांतिकारियों में महत्वपूर्ण स्थान थाउस समय देश की क्रांतिकारी गतिविधियों की देखरेख आजाद ही किया करते थे। जिनके साथी इन्हें "पंडित जी" कहकर संबोधित किया करते थे। काकोरी कांडसांडर्स की हत्या जैसे क्रांतिकारी कार्य आजाद की योजना से ही थे।
आज़ाद कानपूर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ की  आजादी स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था . सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी .जो उनके पास नही था इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगा जाये, लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा|
फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहबाद रवाना हो गए और 27 फरवरी 1931 को सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्र केद में बदलवाने और लड़ाई को आगे जारी रखने के लिए रूस जाकर स्टालिन की मदद लेने की योजना के लिए मिलने गये थेक्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ''सम्बन्ध''थेपर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी, दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी और नेहरु ने तुरंत आजाद को आनंद भवन से निकल जाने को कहा । 
आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये और थोड़ी पश्चात् इलाहबाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर ने अपनी पूरी फ़ोर्स के साथ आकर आजाद को घेर लिया, नॉट वावर ने उन्हें आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर पांच गोली से पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी और भारतमाता की जयकहते हुए माता की गोद में हमेशा के लिए सो गये|
प्रश्न यह है की जिस आजाद को अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका, तलाश नही सका थाउसे अंग्रेजो ने 40मिनट में तलाश कर,  अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया, वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तेयारी के साथ?



➤क्यों आजाद जैसे क्रांतिकारी जिन्हें जीवन भर पुलिस पकड़ ना पाई उन्हें घेर लिया गया तब खुद को गोली मारनी पड़ी..??
क्यों श्रेष्ठ क्रांतिकारी होते हुए उनके साथ गद्दारो ने गद्दारी की..??
क्यों इतने बड़े क्रांतिकारी की माँ को देश की आजादी के बाद भी भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ा..??
वो नेहरू-ग़ांधी परिवार जिसके नाम पर हर शहर में प्रतिमाये हैआजाद की माँ की एक छोटी सी प्रतिमा इलाहाबाद में लगाने जा रहे लोगो (सन १९५१ में ) पर उस नेहरू सरकार ने गोली मारने के आदेश दिए..??
क्या गलती थी चंद्रशेखर आजाद की जो इतना बड़ा परिणाम भुगतना पड़ा..??
क्या देशभक्त होना जुर्म है..??
क्या इन सवालो के जवाब हमारी भावी युवा पीढ़ी ढूंढ पायेगी या केवल नकली हीरो की नकली कहानियो में जीवन गुजार देगी ।
प्रश्न आपके सामने है..?? जवाब आपको देना है..??
वे मर गए पर माता का भार अधूरा है,
देखते होंगे ऊपर से सपना अभी अधूरा है।
कैसे हो मुक्त बेड़िया मेरी भारत माता की,
कैसे जय जयकार हो मेरी भारत माता की।।

· पवन सिंहअभिव्यक्त”, मंदसौर
  मो. 9406601993


5 comments:

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    1. सत्यता समाज के सामने आनी चाहिए

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    2. http://thethreeindian.blogspot.com/2018/05/3.html

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