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| EVM में हेकिंग वाले कहा गये..... |
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी राष्ट्र के चुनाव आयोग के लिए तथा उस देश के लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। फर्जी मतदान की रोकथाम तथा मतदान केंद्रों पर कब्ज़ा जैसी दोषपूर्ण घटनाये स्वच्छ लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरा है। इन बातों को ध्यान में रखकर भारत का चुनाव आयोग समय समय पर स्वतंत्र, पारदर्शी तथा निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार करता रहता है।
इसी सुधार में एक सुधार मतदान करने के तरीके में हुआ जब सन 1982 में पुरानी बैलेट पेपर वाली मत पत्र प्रणाली को त्यागकर केरल के परुर विधानसभा क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर सर्वप्रथम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग किया गया परन्तु इसके बाद EVM का उपयोग इसलिए नही हुआ क्योंकि इन मशीनों के उपयोग को वैधानिक रूप दिए जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का आदेश जारी हुआ था। 1988 दिसम्बर में संसद में इस कानून में संसोधन किया और 'जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951' में नई 'धारा-61 A' जोड़ी गई जो की चुनाव आयोग को EVM मशीनों के उपयोग का अधिकार देती है, यह अधिनियम 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ।
तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा 1990 में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई गई। भारत सरकार ने ईवीएम के इस्तेमाल संबंधी विषय विचार के लिए चुनाव सुधार समिति को भेजा।
भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया। इसमें प्रो.एस.सम्पत तत्कालीन अध्यक्ष आर.ए.सी, रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (तब आईआईटी दिल्ली के साथ) तथा डॉ.सी. राव कसरवाड़ा, निदेशक इलेक्ट्रोनिक्स अनुसंधान तथा विकास केन्द्र, तिरूअनंतपुरम शामिल किए गए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये मशीनें छेड़छाड़ मुक्त हैं।
24 मार्च 1992 को सरकार के विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानूनों, 1961 में आवश्यक सुधार हेतु अधिसूचना जारी की गई।
चुनाव आयोग ने चुनावों में EVM के पूर्ण इस्तेमाल के लिए स्वीकार करने से पहले उनके मूल्यांकन के लिए पुनः एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। प्रो.पी.वी. इनदिरेशन, आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल इसके सदस्य बने। तब से निर्वाचन आयोग ईवीएम से जुड़े सभी तकनीकी पक्षों पर स्वर्गीय प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (पहले की समिति के सदस्य), आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल से लगातार परामर्श लेता है। नवम्बर, 2010 में आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञ समिति का दायरा बढ़ाकर इसमें दो और विशेषज्ञों-आईआईटी मुम्बई के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो.डी.के. शर्मा तथा आईआईटी कानपुर के कम्प्यूटर साइंस तथा इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. रजत मूना (वर्तमान महानिदेशक सी-डैक) को शामिल किया।।हमारे देश में 1999 के बाद आमचुनाव तथा राज्यो के विधानसभा चुनाव में आंशिक रूप से उपयोग शुरू हुआ जो की 2004 के बाद सारे देश में पूर्ण इस्तेमाल किया जाने लगा।
पुरानी मतपत्र प्रणाली (बैलेट पेपर) की तुलना में EVM से वोट डालने में समय कम तथा परिणाम घोषित करने के समय में कमी आई है। EVM के इस्तेमाल से फर्जी मतदान, बूथ हैकिंग जैसी घटनाओं पार पाया जा सकता है। समय समय पर चुनाव आयोग तथा उसकी विशेषज्ञ टीमें इस बात को मानती आई है कि EVM मशीनों के साथ किसी प्रकार की छेड़खानी असम्भव है, परन्तु पिछले कुछ समय से कुछ राजनितिक पार्टियां चुनावों में हार का ठीकरा EVM पर फोड़ रही है और यह मानने से सदैव इंकार कर रही है कि उनके कुकर्मो या जनता में ख़राब छवि के कारण हार का सामना करना पड़ा।।
ऐसे नेता जो देश की निष्पक्ष संस्था जो सारे देश में पारदर्शी चुनाव कराने हेतु दृढसंकल्पित है पर आरोप लगाकर उसे ही गलत सिद्ध करने तथा खुद की हार का दोष आयोग पर मढ़ते रहते है उन पर चुनाव आयोग को सख्ती से पेश आना चाहिए और उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।।
EVM जनता की आशाओं आकांक्षाओं और उम्मीद का वो आइना है जिनमे जनता अपना सुनहरा भविष्य देखती है और आने वाले 5 वर्षों हेतु विकास की दशा दिशा तय करती है।। वो जनता EVM के माध्यम से अपना मत सुरक्षित करती है और जब परिणाम आते है तो वो जनता के लिए कोई आश्चर्य वाले नही होते क्योंकि उसे जिस पर विश्वास होता है उसे वो वोट देते हैं और वो ही जीतता है।।जनता जिसे चाहे चुने, जिसे चाहे नकारे और ऐसे में हारने वाली पार्टी को हार सहर्ष स्वीकार करना चाहिए और हार का आत्ममंथन करना चाहिए यही लोकतंत्र की मर्यादा है, ना की मर्यादा लाँघकर निष्पक्ष संस्था पर ही आक्षेप लगाकर उसे कटघरे में खड़ा करे।
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| Pawan Singh Dorwada |
-पवन सिंह"अभिव्यक्त" , दोरवाड़ा, मंदसौर
मो.9406601993

