राजनीतिक तौर पर विरोधी मीडिया वाले और सच से अनजान लोग अक्सर यह कहते दिखते हैं कि केरल का शांतिपूर्ण माहौल अक्सर माकपा-रा़.स्व़. संघ. के बीच झड़पों और हत्याओं की भेंट चढ़ता रहा है। वे केरल की राजनीतिक हिंसा के शिकार लोगों और आंकड़ों को भी दर्शाते रहे हैं। नतीजतन, आम लोग अक्सर ऐसे झूठे प्रचार को सच मान बैठते हैं। तो सवाल उठता है कि आखिर सच क्या है? क्या माकपा-संघ के झगड़ों की बात सच है? या फिर यह माकपा द्वारा अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ की जाने वाली हिंसा है।
सीधा-सरल सच यह है कि वामपंथी, जिन्हें आधुनिक शब्दावली में मार्क्सवादी कहा जाता है, अन्य विचारधाराओं के धुर विरोधी रहे हैं। पिछली सदी में रूस में हुई अक्तूबर क्रांति के बाद यह सच जब-तब दुनिया भर में सामने आता रहा है। मार्क्सवाद का बुनियादी मूलमंत्र ही 'सर्वहारा की तानाशाही' है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे हमेशा ही कम्युनिस्ट पार्टी के एकछत्र राज के समर्थक रहे हैं। पहले सोवियत संघ और पूर्वी यूरोपीय देशों में और आज उत्तर कोरिया व क्यूबा में हम यही देख रहे हैं।इस तरह की तानाशाही प्रवृत्ति से वामपंथियों के दिमाग में हर जगह असहिष्णुता और नफरत फैली। जिन स्थानों पर वे सत्ता में रहे, वहां तो इसका और भी प्रचंड रूप सामने आया।अन्य विचारधाराओं के प्रति माकपा की असहिष्णुता साबित होती है। माकपा द्वारा की गई इस हिंसा के निशाने पर सबसे ज्यादा रहा है संघ परिवार। इसकी शुरुआत 1940 के दशक में ही हो गई थी जब अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी को केरल में सत्ता का स्वाद चखने की उम्मीद जगी थी।
अविभाजित भाकपा का संघ पर पहला बड़ा हमला 1948 में हुआ था। यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण था कि वह हमला संघ की एक बैठक के दौरान हुआ था जिसे तत्कालीन सरसंघचालक परम पूजनीय श्री गुरुजी संबोधित कर रहे थे। हमला तब हुआ था जब गुरुजी मंच पर मौजूद थे। भाकपा कार्यकर्ताओं की मंशा गुरुजी को चोट पहुंचाने की थी। उस दौरान श्री पी़ परमेश्वर मुख्य शिक्षक थे। स्वयंसेवकों ने हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया था, जिसके बाद मार्क्सवादी उपद्रवी भाग खड़े हुए थे। गुरुजी ने घटना को नजरअंदाज करते हुए बेहद सामान्य भाव से सभा को संबोधित किया था। उन्होंने उस घटना के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
भाकपा का अगला बड़ा हमला श्री गुरुजी द्वारा संबोधित अलप्पुझा की एक अन्य बैठक के दौरान हुआ था। यह 1952 की बात है। उस दौरान वामपंथियों ने गुरुजी के संबोधन के दौरान हमला बोला था। स्वयंसेवकों ने इस बार भी उनका डटकर मुकाबला किया।इसके बाद कुछ समय तक हमले रुके रहे थे। 1964 में भाकपा का विभाजन हुआ। उसके बाद भाकपा ने तो संघ के खिलाफ हमले करने में रुचि नहीं दिखाई। परंतु, कटकर अलग हुए अन्य समूह यानी माकपा ने कुछ वर्षो बाद फिर से उग्र रूप धारण कर लिया। और उनके द्वारा संघ और संघ के अनुसांघिक संघठनो पर लगातार हमले और कार्यकर्ताओ की हत्या का दौर चलता रहा जो आज तक ना थम पाया है!
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| 2014 में कन्नूर जिले के शारीरिक प्रमुख मनोज का शव और उनके परिवार के लोग |
संघ या संघ प्रेरित अन्य संघठनो के कार्यकर्ताओ की निर्मम हत्याए की गई जो आज तक नही रुकी, ऐसे कुछ घटनाओ का उल्लेख यहाँ है-
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1969 में पिनरयी विजयन एवं कोडियरी बालकृष्णन के नेतृत्व में, पोलित ब्यूरो सदस्यों
एवं पूर्व व तत्कलीन राज्य सचिवों ने संघ स्वयंसेवक वडिक्कल रामकृष्णन की हत्या कर
दी। रामकृष्णन माकपाई गढ़ तलास्सेरी में रहने वाला निर्धन व्यक्ति था।
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एक माह बाद, कोट्टायम जिले के
पोनकुन्नम के एक स्वयंसेवक श्रीधरन नायर और पलक्कड के स्वयंसेवक रामकृष्णन को भी
मार दिया गया।
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11 जनवरी, 1970 को एर्नाकुलम जिले के परूर में माकपा हमलावरों ने वरिष्ठ कार्यकर्ता
व पूर्व प्रचारक वेलियाथनादु चंद्रन को मार डाला।
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1973 में त्रिशूर जिले के नलेन्करा में मंडल कार्यवाह शंकरनारायण को मारा
गया।
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1974 में कोच्चि में संघ के मंडल कार्यवाह सुधींद्रन की हत्या हुई।
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1978 में कन्नूर जिले के तलासेरी में एक किशोर छात्र और पनुंद शाखा के
मुख्य शिक्षक चंद्रन की हत्या, खास बात यह है कि चंद्रन के पिता माकपा की स्थानीय
समिति के सदस्य थे। इन हत्याओं के पीछे मंशा माकपा परिवारों को यह चेतावनी देना थी
कि वे संघ से न जुड़ें।
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1980 में कन्नूर अभाविप से जुड़े रहे जिला अधिकारी गंगाधरन को मार डाला
गया
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1981 में संघ के खंड कार्यवाह करिमबिल सतीशन कन्नूर
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1984 में कन्नूर सह जिला कार्यवाह सदानंदन मास्टर की घुटनों से नीचे दोनों
टांगें काट दी
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1986 में जिला के भाजपा सचिव पन्नयनूर चंद्रन और भारतीय जनता युवा मोर्चा के
राज्य उपाध्यक्ष जयकृष्णन मास्टर
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अभाविप के तत्कालीन
संयोजक सचिव के. जी़ वेणुगोपाल एवं तत्कालीन जिला प्रचारक वी़ एन. गोपीनाथ के
अनुसार गंगाधरन के सर्वेक्षण विभाग में आते ही वहां के एक कर्मचारी ने माकपा को
सूचित कर दिया था। इसके बाद गंगाधरन की उनकी कुर्सी पर ही हत्या कर दी गई थी। शव
को पोस्टमार्टम के लिए न भेजा जाए, इसके लिए हत्यारों ने जिला कलेक्टर को भी धमकाया था!
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18 सितंबर, 1980 को अलप्पुझा जिले में गोपालकृष्णन की हत्या
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कुट्टनाडु में 1982 में खंड कार्यवाह
विश्वम्भरम की थी।
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1984 में कोदुंगलूर तालुका कार्यवाह और कर्मठ संघकर्मी टी़ सतीशन को बीच
रास्ते में मार डाला गया।
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उसी वर्ष एर्नाकुलम जिले
के नयथोदु में माकपा तत्वों ने पूर्व प्रचारक अयप्पन की बम फोड़कर हत्या कर दी थी।
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मार्च 1984 में एर्नाकुलम के ही
त्रिप्पुनितुरा में उन्नीकृष्णन को मार दिया गया था।
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1987 में तिरुअनंतपुरम जिले के मुरिक्कुमपुझा में एक ही घटना में तीन
स्वयंसेवक मारे गए थे।
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सितंबर 1996 में अलप्पुझा जिले के
मन्नार के देवासम बोर्ड कॉलेज के तीन अभाविप कार्यकर्ताओं अनु, सजित और किम करुण को
पम्पा नदी में डुबोकर मार डाला गया था।
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अक्तूबर 1996 में कोट्टायम जिले के
चंगनासेरी में अभाविप सदस्य बिंबी की हत्या कर दी गई थी।
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2014 में कन्नूर जिले के शारीरिक प्रमुख मनोज
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22 मई 2016 को थ्रिसुर में संघ कार्यकर्ता
प्रमोद को धारदार हथियारों से मौत के घाट उतार दिया गया
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11 जुलाई 2016 को कन्नूर मर सी. के. रामचंद्रन को
माकपाई गुंडों ने मार डाला
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3 सितम्बर 2016 कन्नूर में ही दिनेश नामक युवक की
हत्या
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7 अक्टुम्बर 2016 को 19 वर्षीय विष्णु की हत्या
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12 दिसम्बर 2016 को कन्नूर मे रेमिथ उथमन को मार
डाला
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19 दिसम्बर 2016 को तिरुअनंतपुरम में श्री अनिल
कुमार की नृशंस हत्या
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28 दिसम्बर 2016 को पलक्कड़ में भाजपा के श्री
राधाकृषण और उनकी पत्नी विमला को घर में बंद करके जिन्दा जला दिया
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18 जनवरी 2017 को संघ के 52 वर्षीय स्वयंसेवक श्री संतोषकुमार
को घर में घुस कर आधी रात में परिवार के सामने काटकर मार डाला
ऐसे कई कार्यकर्ताओ को माकपा के गुंडों ने
मार डाला, उनका गुनाह केवल इतना था की वो संघ या उसके प्रेरित संघठनो के
कार्यकर्ता थे, और उन्होंने उन गुंडाई लोगो का साथ नही दिया!
संघ ने हमेशा से ही भारत में रहने
वाले हर बंधू को अपना बंधू मानकर उनके साथ सद्व्यवहार ही किया है, परन्तु उसका गलत फायदा और हमारी ताकत
को इसी कारण से विरोधियो ने कम आंका है, परन्तु अब सहन नही करेंगे, कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक
तक कही भी हमारे किसी भी भाई अत्याचार हुआ तो कोई भी शांत नही बैठेगा।
हमे हमारी ताकत सबको दिखानी होगी, ताकि विरोधी हम पर आंख ना उठा पाये।
माँ भारती के उपासक हिन्दू संघठनो के कार्यकर्ताओं पर कुछ महीनो से अत्यंत बर्बरता पूर्ण होने वाली का सिलसिला बड़ गया है. हम सब जानते हैं की कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य शासन की होती है, किन्तु केरल में योजनाबद्ध रूप से होने वाली इन नृशंस हत्याओं को राज्य शासन का अप्रत्यक्ष समर्थन है. केरल के मुख्यमंत्री जिस जिले से हैं, उस जिले में सबसे ज्यादा हत्याएं हुई हैं. जिसे मुख्यमंत्री का सरक्षण प्राप्त है ओए वो इस विषय पर कुछ कहते नही है इसी कारण से पुलिस प्रशासन भी हमेशा ही पीड़ित पर हावी होता है!
इस विषय को लेकर 1 मार्च 2017, बुधवार को सम्पूर्ण भारत देश में एक साथ धरना आन्दोलन किया जायेगा, जो केरल की माकपाई कम्यूनिस्टो की सरकार को एक कड़ा तमाचा हो, जिसमे अधिक से अधिक संख्या में हिन्दू बंधूओ के साथ अपने जिला, विभाग केंद्र पर आन्दोलन में भाग लेकर केरल में हिन्दूओ पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए सहयोग दे...
हमे हमारी ताकत सबको दिखानी होगी, ताकि विरोधी हम पर आंख ना उठा पाये।
माँ भारती के उपासक हिन्दू संघठनो के कार्यकर्ताओं पर कुछ महीनो से अत्यंत बर्बरता पूर्ण होने वाली का सिलसिला बड़ गया है. हम सब जानते हैं की कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य शासन की होती है, किन्तु केरल में योजनाबद्ध रूप से होने वाली इन नृशंस हत्याओं को राज्य शासन का अप्रत्यक्ष समर्थन है. केरल के मुख्यमंत्री जिस जिले से हैं, उस जिले में सबसे ज्यादा हत्याएं हुई हैं. जिसे मुख्यमंत्री का सरक्षण प्राप्त है ओए वो इस विषय पर कुछ कहते नही है इसी कारण से पुलिस प्रशासन भी हमेशा ही पीड़ित पर हावी होता है!
इस विषय को लेकर 1 मार्च 2017, बुधवार को सम्पूर्ण भारत देश में एक साथ धरना आन्दोलन किया जायेगा, जो केरल की माकपाई कम्यूनिस्टो की सरकार को एक कड़ा तमाचा हो, जिसमे अधिक से अधिक संख्या में हिन्दू बंधूओ के साथ अपने जिला, विभाग केंद्र पर आन्दोलन में भाग लेकर केरल में हिन्दूओ पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए सहयोग दे...
आंकड़े संदर्भ- पांचजन्य
-पवन सिंह”अभिव्यक्त”
मो- 9406601993






