Tuesday, 28 February 2017

केरल में हिन्दुओ पर हमले और माकपा सरकार का गुंडों को संरक्षण


राजनीतिक तौर पर विरोधी मीडिया वाले और सच से अनजान लोग अक्सर यह कहते दिखते हैं कि केरल का शांतिपूर्ण माहौल अक्सर माकपा-रा़.स्व़. संघ. के बीच झड़पों और हत्याओं की भेंट चढ़ता रहा है। वे केरल की राजनीतिक हिंसा के शिकार लोगों और आंकड़ों को भी दर्शाते रहे हैं। नतीजतन, आम लोग अक्सर ऐसे झूठे प्रचार को सच मान बैठते हैं। तो सवाल उठता है कि आखिर सच क्या है? क्या माकपा-संघ के झगड़ों की बात सच है? या फिर यह माकपा द्वारा अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ की जाने वाली हिंसा है।
सीधा-सरल सच यह है कि वामपंथी, जिन्हें आधुनिक शब्दावली में मार्क्सवादी कहा जाता है, अन्य विचारधाराओं के धुर विरोधी रहे हैं। पिछली सदी में रूस में हुई अक्तूबर क्रांति के बाद यह सच जब-तब दुनिया भर में सामने आता रहा है। मार्क्सवाद का बुनियादी मूलमंत्र ही 'सर्वहारा की तानाशाही' है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे हमेशा ही कम्युनिस्ट पार्टी के एकछत्र राज के समर्थक रहे हैं। पहले सोवियत संघ और पूर्वी यूरोपीय देशों में और आज उत्तर कोरिया व क्यूबा में हम यही देख रहे हैं।इस तरह की तानाशाही प्रवृत्ति से वामपंथियों के दिमाग में हर जगह असहिष्णुता और नफरत फैली। जिन स्थानों पर वे सत्ता में रहे, वहां तो इसका और भी प्रचंड रूप सामने आया।अन्य विचारधाराओं के प्रति माकपा की असहिष्णुता साबित होती है। माकपा द्वारा की गई इस हिंसा के निशाने पर सबसे ज्यादा रहा है संघ परिवार। इसकी शुरुआत 1940 के दशक में ही हो गई थी जब अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी को केरल में सत्ता का स्वाद चखने की उम्मीद जगी थी।
अविभाजित भाकपा का संघ पर पहला बड़ा हमला 1948 में हुआ था। यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण था कि वह हमला संघ की एक बैठक के दौरान हुआ था जिसे तत्कालीन सरसंघचालक परम पूजनीय श्री गुरुजी संबोधित कर रहे थे। हमला तब हुआ था जब गुरुजी मंच पर मौजूद थे। भाकपा कार्यकर्ताओं की मंशा गुरुजी को चोट पहुंचाने की थी। उस दौरान श्री पी़ परमेश्वर मुख्य शिक्षक थे। स्वयंसेवकों ने हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया था, जिसके बाद मार्क्सवादी उपद्रवी भाग खड़े हुए थे। गुरुजी ने घटना को नजरअंदाज करते हुए बेहद सामान्य भाव से सभा को संबोधित किया था। उन्होंने उस घटना के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।

भाकपा का अगला बड़ा हमला श्री गुरुजी द्वारा संबोधित अलप्पुझा की एक अन्य बैठक के दौरान हुआ था। यह 1952 की बात है। उस दौरान वामपंथियों ने गुरुजी के संबोधन के दौरान हमला बोला था। स्वयंसेवकों ने इस बार भी उनका डटकर मुकाबला किया।
इसके बाद कुछ समय तक हमले रुके रहे थे। 1964 में भाकपा का विभाजन हुआ। उसके बाद भाकपा ने तो संघ के खिलाफ हमले करने में रुचि नहीं दिखाई। परंतु, कटकर अलग हुए अन्य समूह यानी माकपा ने कुछ वर्षो बाद फिर से उग्र रूप धारण कर लिया। और उनके द्वारा संघ और संघ के अनुसांघिक संघठनो पर लगातार हमले और कार्यकर्ताओ की हत्या का दौर चलता रहा जो आज तक ना थम पाया है! 

2014 में कन्नूर जिले के शारीरिक प्रमुख मनोज का शव और उनके परिवार के लोग 

संघ या संघ प्रेरित अन्य संघठनो के कार्यकर्ताओ की निर्मम हत्याए की गई जो आज तक नही रुकी, ऐसे कुछ घटनाओ का उल्लेख यहाँ है-
Ø  1969 में पिनरयी विजयन एवं कोडियरी बालकृष्णन के नेतृत्व में, पोलित ब्यूरो सदस्यों एवं पूर्व व तत्कलीन राज्य सचिवों ने संघ स्वयंसेवक वडिक्कल रामकृष्णन की हत्या कर दी। रामकृष्णन माकपाई गढ़ तलास्सेरी में रहने वाला निर्धन व्यक्ति था।
Ø  एक माह बाद, कोट्टायम जिले के पोनकुन्नम के एक स्वयंसेवक श्रीधरन नायर और पलक्कड के स्वयंसेवक रामकृष्णन को भी मार दिया गया।
Ø  11 जनवरी, 1970 को एर्नाकुलम जिले के परूर में माकपा हमलावरों ने वरिष्ठ कार्यकर्ता व पूर्व प्रचारक वेलियाथनादु चंद्रन को मार डाला।
Ø  1973 में त्रिशूर जिले के नलेन्करा में मंडल कार्यवाह शंकरनारायण को मारा गया।
Ø  1974 में कोच्चि में संघ के मंडल कार्यवाह सुधींद्रन की  हत्या हुई।
Ø  1978 में कन्नूर जिले के तलासेरी में एक किशोर छात्र और पनुंद शाखा के मुख्य शिक्षक चंद्रन की हत्या, खास बात यह है कि चंद्रन के पिता माकपा की स्थानीय समिति के सदस्य थे। इन हत्याओं के पीछे मंशा माकपा परिवारों को यह चेतावनी देना थी कि वे संघ से न जुड़ें।
Ø  1980 में कन्नूर अभाविप से जुड़े रहे जिला अधिकारी गंगाधरन को मार डाला गया
Ø  1981 में संघ के खंड कार्यवाह करिमबिल सतीशन कन्नूर
Ø  1984 में कन्नूर सह जिला कार्यवाह सदानंदन मास्टर की घुटनों से नीचे दोनों टांगें काट दी
Ø  1986 में जिला के भाजपा सचिव पन्नयनूर चंद्रन और भारतीय जनता युवा मोर्चा के राज्य उपाध्यक्ष जयकृष्णन मास्टर
Ø  अभाविप के तत्कालीन संयोजक सचिव के. जी़ वेणुगोपाल एवं तत्कालीन जिला प्रचारक वी़ एन. गोपीनाथ के अनुसार गंगाधरन के सर्वेक्षण विभाग में आते ही वहां के एक कर्मचारी ने माकपा को सूचित कर दिया था। इसके बाद गंगाधरन की उनकी कुर्सी पर ही हत्या कर दी गई थी। शव को पोस्टमार्टम के लिए न भेजा जाए, इसके लिए हत्यारों ने जिला कलेक्टर को भी  धमकाया था!
Ø  18 सितंबर, 1980 को अलप्पुझा जिले में गोपालकृष्णन की हत्या
Ø  कुट्टनाडु में 1982 में खंड कार्यवाह विश्वम्भरम की थी।
Ø  1984 में कोदुंगलूर तालुका कार्यवाह और कर्मठ संघकर्मी टी़ सतीशन को बीच रास्ते में मार डाला गया।
Ø  उसी वर्ष एर्नाकुलम जिले के नयथोदु में माकपा तत्वों ने पूर्व प्रचारक अयप्पन की बम फोड़कर हत्या कर दी थी।
Ø  मार्च 1984 में एर्नाकुलम के ही त्रिप्पुनितुरा में उन्नीकृष्णन को मार दिया गया था।
Ø  1987 में तिरुअनंतपुरम जिले के मुरिक्कुमपुझा में एक ही घटना में तीन स्वयंसेवक मारे गए थे।
Ø  सितंबर 1996 में अलप्पुझा जिले के मन्नार के देवासम बोर्ड कॉलेज के तीन अभाविप कार्यकर्ताओं अनु, सजित और किम करुण को पम्पा नदी में डुबोकर मार डाला गया था।
Ø  अक्तूबर 1996 में कोट्टायम जिले के चंगनासेरी में अभाविप सदस्य बिंबी की हत्या कर दी गई थी।
Ø  2014 में कन्नूर जिले के शारीरिक प्रमुख मनोज
Ø  22 मई 2016 को थ्रिसुर में संघ कार्यकर्ता प्रमोद को धारदार हथियारों से मौत के घाट उतार दिया गया
Ø  11 जुलाई 2016 को कन्नूर मर सी. के. रामचंद्रन को माकपाई गुंडों ने मार डाला
Ø  3 सितम्बर 2016 कन्नूर में ही दिनेश नामक युवक की हत्या
Ø  7 अक्टुम्बर 2016 को 19 वर्षीय विष्णु की हत्या
Ø  12 दिसम्बर 2016 को कन्नूर मे रेमिथ उथमन को मार डाला
Ø  19 दिसम्बर 2016 को तिरुअनंतपुरम में श्री अनिल कुमार की नृशंस हत्या
Ø  28 दिसम्बर 2016 को पलक्कड़ में भाजपा के श्री राधाकृषण और उनकी पत्नी विमला को घर में बंद करके जिन्दा जला दिया
Ø  18 जनवरी 2017 को संघ के 52 वर्षीय स्वयंसेवक श्री संतोषकुमार को घर में घुस कर आधी रात में परिवार के सामने काटकर मार डाला

ऐसे कई कार्यकर्ताओ को माकपा के गुंडों ने मार डाला, उनका गुनाह केवल इतना था की वो संघ या उसके प्रेरित संघठनो के कार्यकर्ता थे, और उन्होंने उन गुंडाई लोगो का साथ नही दिया!
संघ ने हमेशा से ही भारत में रहने वाले हर बंधू को अपना बंधू मानकर उनके साथ सद्व्यवहार ही किया है, परन्तु उसका गलत फायदा और हमारी ताकत को इसी कारण से विरोधियो ने कम आंका है, परन्तु अब सहन नही करेंगे, कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक कही भी हमारे किसी भी भाई अत्याचार हुआ तो कोई भी शांत नही बैठेगा।
हमे हमारी ताकत सबको दिखानी होगी, ताकि विरोधी हम पर आंख ना उठा पाये।
माँ भारती के उपासक हिन्दू संघठनो के कार्यकर्ताओं पर कुछ महीनो से अत्यंत बर्बरता पूर्ण होने वाली का सिलसिला बड़ गया है. हम सब जानते हैं की कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य शासन की होती है, किन्तु केरल में योजनाबद्ध रूप से होने वाली इन नृशंस हत्याओं को राज्य शासन का अप्रत्यक्ष समर्थन है. केरल के मुख्यमंत्री जिस जिले से हैं, उस जिले में सबसे ज्यादा हत्याएं हुई हैं. जिसे मुख्यमंत्री का सरक्षण प्राप्त है ओए वो इस विषय पर कुछ कहते नही है इसी कारण से पुलिस प्रशासन भी हमेशा ही पीड़ित पर हावी होता है!


इस विषय को लेकर 1 मार्च 2017, बुधवार को सम्पूर्ण भारत देश में एक साथ धरना आन्दोलन किया जायेगा, जो केरल की माकपाई कम्यूनिस्टो की सरकार को एक कड़ा तमाचा हो, जिसमे अधिक से अधिक संख्या में हिन्दू बंधूओ के साथ अपने जिला, विभाग केंद्र पर आन्दोलन में भाग लेकर केरल में हिन्दूओ पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए सहयोग दे...

आंकड़े संदर्भ- पांचजन्य

-पवन सिंह”अभिव्यक्त”
मो- 9406601993


Monday, 27 February 2017

चंद्रशेखर आजाद की शहादत के अनसुलझे प्रश्न?????

चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर ताप हूँ मैं,
फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घाष हूँ मैं।
कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर,
चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ संताप हूँ मैं।
आजाद हूँ मै.....
देवनिर्मित भारतभूमि सबसे श्रेष्ठ और पुण्यफल देने वाली भूमि है। विश्व में केवल यही भूमि है जिसे माता कहा जाता है,अन्य किसी देश को माता नही कहा जाता है। भारत यह कोई भूमि का टुकड़ा नही हैयह तो शाश्वत जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है। इस भारतभूमि पर समय-समय पर कई वीर पुत्रो ने जन्म लेकर माता की रक्षा के लिए स्वयं के प्राणों की बाजी लगा दी।
ऐसे ही एक वीर क्रांतिकारी थे- चंद्रशेखर आजाद। देश के गुलामी के कालखंड में 23 जुलाई 1906  को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में भाबरा नामक गाँव में पिता पंडित सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी के घर जन्म हुआ था।

उस कालखंड में देशभक्ति का ज्वार चरम पर था जगह जगह देश की आजादी के लिए आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियां चलती रहती थी। 15 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर वेद पाठ की पढाई के लिए इलाहबाद गये जहाँ एक आंदोलन में "वन्दे मातरम" और "भारतमाता की जय" के उस समय प्रतिबंधित नारे लगाने के जुर्म में इन्हें जज के सामने पेश किया गया जहाँ नाम पूछने पर इन्होंने अपना नाम "आजाद" बताया और तभी से आप चन्द्रशेखर आजाद कहलाये और उसी समय प्रण लिया था कि मरते दम तक कभी पुलिस के हाथ नही आऊँगा तो कभी भी पुलिस के हाथ ना आये।आजाद का क्रांतिकारियों में महत्वपूर्ण स्थान थाउस समय देश की क्रांतिकारी गतिविधियों की देखरेख आजाद ही किया करते थे। जिनके साथी इन्हें "पंडित जी" कहकर संबोधित किया करते थे। काकोरी कांडसांडर्स की हत्या जैसे क्रांतिकारी कार्य आजाद की योजना से ही थे।
आज़ाद कानपूर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ की  आजादी स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था . सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी .जो उनके पास नही था इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगा जाये, लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा|
फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहबाद रवाना हो गए और 27 फरवरी 1931 को सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्र केद में बदलवाने और लड़ाई को आगे जारी रखने के लिए रूस जाकर स्टालिन की मदद लेने की योजना के लिए मिलने गये थेक्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ''सम्बन्ध''थेपर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी, दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी और नेहरु ने तुरंत आजाद को आनंद भवन से निकल जाने को कहा । 
आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये और थोड़ी पश्चात् इलाहबाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर ने अपनी पूरी फ़ोर्स के साथ आकर आजाद को घेर लिया, नॉट वावर ने उन्हें आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर पांच गोली से पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी और भारतमाता की जयकहते हुए माता की गोद में हमेशा के लिए सो गये|
प्रश्न यह है की जिस आजाद को अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका, तलाश नही सका थाउसे अंग्रेजो ने 40मिनट में तलाश कर,  अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया, वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तेयारी के साथ?



➤क्यों आजाद जैसे क्रांतिकारी जिन्हें जीवन भर पुलिस पकड़ ना पाई उन्हें घेर लिया गया तब खुद को गोली मारनी पड़ी..??
क्यों श्रेष्ठ क्रांतिकारी होते हुए उनके साथ गद्दारो ने गद्दारी की..??
क्यों इतने बड़े क्रांतिकारी की माँ को देश की आजादी के बाद भी भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ा..??
वो नेहरू-ग़ांधी परिवार जिसके नाम पर हर शहर में प्रतिमाये हैआजाद की माँ की एक छोटी सी प्रतिमा इलाहाबाद में लगाने जा रहे लोगो (सन १९५१ में ) पर उस नेहरू सरकार ने गोली मारने के आदेश दिए..??
क्या गलती थी चंद्रशेखर आजाद की जो इतना बड़ा परिणाम भुगतना पड़ा..??
क्या देशभक्त होना जुर्म है..??
क्या इन सवालो के जवाब हमारी भावी युवा पीढ़ी ढूंढ पायेगी या केवल नकली हीरो की नकली कहानियो में जीवन गुजार देगी ।
प्रश्न आपके सामने है..?? जवाब आपको देना है..??
वे मर गए पर माता का भार अधूरा है,
देखते होंगे ऊपर से सपना अभी अधूरा है।
कैसे हो मुक्त बेड़िया मेरी भारत माता की,
कैसे जय जयकार हो मेरी भारत माता की।।

· पवन सिंहअभिव्यक्त”, मंदसौर
  मो. 9406601993


Friday, 24 February 2017

तेरे चरणों की धुली हूँ तो, ये भी मुझे गंवारा है।

तेरे चरणों की धुली हूँ तो,
ये भी मुझे गंवारा है।
हे शिव! तुझसे कौन जीते,
सारा जग तुझसे हारा है।।

हे देवो के देव शिवा,
कैलाशपति निरंकारी।
भक्तो के दुःख हरने वाले,
दुष्टो के अति भयंकरी।।
तू शाश्वत स्वामी है सबका,
और सारे कष्टो को हर्ता।
सारे जग से कष्ट मिटाये,
सुख वैभव हर घर में कर्ता।।
तुझसे दूर जाये ना कोई,
तेरी महिमा अपरम्पारा है।।
तेरे चरणों की धुली हूँ तो,
ये भी मुझे गंवारा है।।


दुनिया की रंगत न्यारी बाबा,
तू उन सबसे न्यारा है।
कैलाश विराजे देवपति,
तू जग में सबसे प्यारा है।
ओगड़दानी और भस्मरमैया,
भूतो के संग रहने वाले।
जगचिंतक जग कष्ट निवारक,
शिवबाबा तुम हो निराले।।
तेरे दर्शन मात्र से बाबा,
दुःख सागर को तारा है
तेरे चरणों की धुली हूँ तो,
ये भी मुझे गंवारा है।।


तुझको पुजे तुझको मानें,
वो हर इच्छा पा जाता है।
जो तेरी भक्ति में बहता,
तेरा ही हो जाता है।।
अहसास जिसे तेरा मन में,
वो पाप मुक्त हो जाता है।
तेरी धुन में रमने वाला,
कष्टो को ना पाता है।।
हर पल मेरे संग में रहना,
"अभिव्यक्त" का तू ही सहारा है।।
तेरे चरणों की धुली हूँ तो,
ये भी मुझे गंवारा है।।


  पवन सिंह"अभिव्यक्त"


Thursday, 23 February 2017

भारत- विश्व की उभरती शक्ति का केंद्र बिंदु

भारत की वैज्ञानिक परम्परा विश्व की सबसे प्राचीन परंपरा है। ईसा के भी लगभग 3000 वर्षो पूर्व चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, नागार्जुन जैसे महान पुरुषों की नित नई खोजो, प्रयोगों से भारत विश्व को ज्ञान देता था। हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, रसायन, यांत्रिकी, खगोल विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में हम सबसे अग्रणी थे और समय समय पर महान वैज्ञानिको ने अपना योगदान देकर इस भारत भूमि को अपने प्रयोगों से उद्दीप्तमान किया, परन्तु समय ने करवट ली और मुगलो के आक्रमण, फिर अंग्रेजो की दासता की जंजीरों में भारत उलझ गया और भारत की श्रेष्ठ विज्ञान परम्परा जो धीरे धीरे विदेश जाती गई। हम कोई भी नया प्रयोग करते और उसका सम्मान विदेशी ले लेते थे, और उसी से उन्होंने खूब वाहवाही लूटी।
देश की आज़ादी के बाद हम पुनः हमारे खोये वैभव को पाने में लगे और आज सारे विश्व के सामने हमारा भारत सबसे आगे और भारतमाता सबसे ऊपर नजर आती है। पोखरण में जब हमारे देश के वेज्ञानिको ने प्रक्षेपास्त्र छोड़ा था तब सारा विश्व आश्चर्य में पड़ गया था कि भारत भी ऐसा कर सकता हैं, भारत की शक्ति को कम आंकने वाले और भारत को गंवारों का देश कहने वाले भी अभी एक साथ 104 उपग्रहों के सफल परीक्षण पर नतमस्तक हुए थे। ये हमारे देश के होनहार वेज्ञानिको द्वारा रचा गया ऐसा कीर्तिमान था जिसने सारे विश्व को भारत की पावन धरती को निहारने पर मजबूर कर दिया।।
भारत विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है, यहां के युवाओं ने सारे विश्व में जाकर भारत की महानता का परिचय दिया है। नासा जैसे प्रमुख अमेरिकी अनुसन्धान केंद्र के 35% भारतीय वैज्ञानिक है जो अमेरिकी अनुसन्धान की धुरी है।

आज भारत विश्व में सबसे बड़ी उभरती शक्ति का केंद्र बिंदु है। परमाणु ऊर्जा का क्षेत्र हो या अंतरिक्ष विज्ञान की श्रेष्ठता, चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियां हो या कृषि के क्षेत्र में नये प्रयोग। आज सारे विश्व की निगाहे भारत पर है, आने वाले समय में भारत ही दुनिया का संचालन करने वाला है। भारतमाता पुनः विश्वगुरु के आसन पर विराजित होकर सारे विश्व पर राज करेगी और तब दुनिया को भी एक स्वर में कहना होगा- भारतमाता की जय!!


पवन सिंह"अभिव्यक्त"
मो. 09406601993

Friday, 3 February 2017

माँ नर्मदा की कहानी उन्ही की जुबानी

हमारा देश भारत आज जैसा है वैसा पहले ना था, आज जहाँ हिमालय है वहाँ करोड़ो वर्षो पहले बड़ा समुद्र था। इसी तरह आज जहाँ मै हूँ वहां करोड़ो साल पहले अरब सागर का एक हिस्सा हुआ करता था, इसीलिए तो मेरी घाटी में दरियाई घोड़े, भेंसे आदि समुद्री पशुओं के जीवाश्म मिलते है। उम्र के हिसाब से मै गंगा से बड़ी हूं। जब गंगा नही थी तब मैं थी। मेरे तट पर मोहनजोदड़ो या हड़प्पा जैसे प्राचीन नगर नही रहे और रहे भी कैसे मेरे दिनों तट पर दंडकारण्य जैसे घने जंगल हुआ करते थे। 
तपस्वियों का कहना था कि तपस्या तो बस नर्मदा तट पर ही करना चाहिए, ऐसे ही एक तपस्वी ने मेरा नाम रेवा रख दिया। रेव मतलब कूदना। मै हूं ही चंचल, उछलना-कूदना मेरे स्वभाव मै ही है, तभी तो चट्टानों से उछल-कूद करती रहती हूँ। एक अन्य ऋषि ने मुझे नर्मदा नाम दिया।।
मै भारत की प्रमुख सात नदियों में से एक हूं। पुराणों में जितना मेरे बारे में लिखा गया उतना किसी और नदी के बारे में नही लिखा। स्कन्दपुराण का रेवा खण्ड तो पूरा मुझको ही समर्पित है। पुराणों में उल्लेख है कि जो पूण्य गंगा में स्नान से मिलता है वो मेरे दर्शन मात्र से ही मिलता है। भारत की अधिकांश नदियां पूर्व की ओर बहती है पर मै पश्चिम की ओर बहती हूं। मेरे विवाह के समय सोनभद्र (सोन नद) से नाराज होकर विवाह न करने का संकल्प लेकर पश्चिम की ओर चल दी और सोन लज्जित होकर पूर्व की ओर चला गया। मै चिरकुमारी कहलाई इसलिए भक्त मुझे अत्यंत पवित्र मानकर मेरी पूजा करते है। मेरी परिक्रमा जो नंगे पैर होती है जिसे करने में 3 वर्ष 3 माह और 13 दिन का समय लगता है करते है।।
संघर्षो में रास्ता बनाना कोई मुझसे सीखे,। अमरकंटक से जो एक बार चली तो पहाड़ो को काटती, घाटियों को पार करती, वनों में रास्ता बनाती, पथरीले पाटो को चीरती हुई चलती जाती हूँ। ओम्कारेश्वर जैसे पवित्र स्थल और महेश्वर जैसे प्रसिध्य घाट मेरे तट पर ही है। 
मेरे मुहाने पर बसा भरूच जो कभी पश्चिम भारत का बड़ा बंदरगाह हुआ करता था, व्यापारियों की भीड़ लगी रहती थी आज वो वीरान है। यही मै अरब सागर की खम्भात की खाड़ी में मिलती हूं, याद आया मुझे की जब मै अमरकंटक से चली थी तब छोटी सी थी इतनी छोटी की कोई बच्चा भी कूद कर पार करले पर यहाँ मेरा पाट 20 कि. मी. का है,यह तय करना यहाँ मुश्किल है कि कहाँ मेरा अंत है और कहाँ समुद्र का प्रारम्भ।।
परन्तु मै अब पहले जैसी नही रही, मेरे किनारे के वन काट दिए गए, पक्षियों का कोलाहल बंद हो गया, बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां बन गई जिनका गन्दा पानी मुझमे छोड़ा जाता है, बाँध बनाकर मेरा पानी रोका गया, इन सबसे मुझे बहुत बुरा लगता है ओर लगे भी क्यों ना मै स्वछन्द विचरण करने की आदी हो चुकी हूँ इस कारण कभी कभी गुस्से में उफ़न भी जाती हूँ पर फिर शांत भी हो जाती हूँ, आखिर माँ हुआ ना, माँ कैसे अपने बच्चों पर गुस्सा करेगी, पर बच्चों की भी जिम्मेदारी है कि माँ को संभाले, उसको साफ-स्वच्छ रखे, गंदगी से दूर रखें वरना मै भी कब तक बच्चो का ध्यान रख पाऊँगी।।
एक संकल्प आप आज कर लो की मेरा और मेरे जैसी बाकी सभी माँओ (नदियों) का ध्यान रखोगे उन्हें गन्दा नही करोगे।

-  पवन सिंह "अभिव्यक्त"
 मो. - 09406601993