Monday, 23 March 2020

देश की रक्षा का एक दिन


बचपन से सुना था कि देश में लाल बहादुर शास्त्री नाम के प्रधानमंत्री हुए, जिन्होंने देश को एक समय उपवास रखने को कहा ओर पूरे देश ने उस व्रत को निभाया था। हमनें शास्त्री जी को नहीं देखा, हमनें उनके संकल्प को नहीं जीया, पर हमनें आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को देखा और उनके व्रत को जिया और विश्वास कीजिये, आने वाले समय में इस चिरस्थाई दिन 22 मार्च 2020 की कहानियां, किस्से, यादें, इतिहास बनकर भावी पीढ़ियां सुनेगी और इसकी गूंज युगों तक रहेगी कि कैसे एक वैश्विक महामारी के संघर्ष में देश के प्रधान सेवक के एक आह्वान पर सारा देश एक हो गया था।

हमें गर्व होना चाहिए कि हमनें इस महान भारत भूमि पर जन्म लिया। आज इस भागती दौड़ती जिंदगी में कौन घर के अंदर रहना चाहता है? 22 मार्च को सारा देश सुनसान था, इस दिन देश में रेल की पटरियों को, सड़को को, गलियों को चौबारों को इतिहास में पहली बार सुकून मिला था।
पूरा दिन घर में रहने के बाद सबको इंतजार था तो शाम 5:00 बजने का। और जब.वह घड़ी आई जिसका पूरे देश इंतजार कर रहा था,जिसे जो मिला उसे बचाने दौड़ा। थाली, कटोरी, चम्मच, घंटे,.बाजे, ढोल, नगाड़े, दिवाली के बचे हुए पटाखे, खाली डिब्बे जिन्हें जो मिला उसे बजाया। सारे देश ने बजाया, बच्चे ने-बूढ़े ने, महिला ने-पुरुष ने, बहन ने-भाई ने, पति ने-पत्नी ने, दादा ने-दादी ने, नेता, अभिनेता, कलाकार, व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, कर्मचारी, अमीर, गरीब सबने बजाया।
 कल सारे देश में जाति के बंधन टूट गए, धर्म की दीवारें ध्वस्त हो गई। कल देश में कोई अहंकार नहीं था, था तो केवल एक --भारत माता की जय का नारा।।
सारा देश सैनिको, पुलिस, डॉक्टरों और उनके साथियों के हौसले को बढ़ा रहा था, देश का एक भाव था,एक संकल्प था।
शाम 5:00 बजे का अनुष्ठान था-देश की रक्षा का"" जिसे निभाया इस देश के 130 करोड़ भारतीयों ने।
कल देश का बुरा चाहने वाले, वो चाहे देश के अंदर हो या बाहर सब ने देखा और समझा कि इस सनातनी भारत को खत्म करना किसी के बस में नहीं।
कुछ क्षण घर में ना टिकने वाले, दिनों  पहले छुट्टी के दिन खासकर रविवार को बाहर जाकर कुछ करने की सोच रखने वाले, भारतीयों को एक छोटे से आह्वान ने एक कर दिया। किसी का कोई कार्यक्रम नहीं था। सारा देश अपने अपने परिवार के साथ छुट्टी मना रहा था। परिवार के साथ समय बिताने का यह अवसर केवल एक छोटे से संदेश, एक व्यक्ति के आह्वान ने दिया, और उसे पूरी निष्ठा आदर से सारे देश ने जीया।।

अंत में यह इस वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ लड़ाई की यह भारत में शुरुआत है, कोरोना को देश से हराने की, इसे भगाने की, जिसके लिए सारा देश प्रयासरत हैं।। हमें भी इसी प्रकार एक होकर साथ चलना होगा, क्योंकि "इसका बचाव ही इसका इलाज है" इसलिए इस संकल्प को 1 दिन का ना मानकर जब तक सब कुछ ठीक नहीं हो जाता तक पालन करना होगा और कोरोना को ना कहना होगा।।

-पवन सिंह 'अभिव्यक्त', मंदसौर
-9406601993

Friday, 21 February 2020

"दीवार" आज फिर प्रासंगिक है.....

       "उफ तुम्हारे उसूल! तुम्हारे आदर्श! किस काम के ये उसूल जब इन सबको गूंथकर एक वक्त की रोटी नही बनाई जा सकती।"
1975 में आई फ़िल्म _दीवार_ का है।।

      _दीवार_ आज कल खबरों में है। दिल्ली के चुनावों में प्रचंड जीत के नायक केजरी'वाल' हो या अपनी एक के बाद एक शानदार पारियों से सबक दिल जीतने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के नए _दीवार_ केएल राहुल हो.... या देश की सबसे उम्रदराज राजनीति पार्टी कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के लिए _दीवार_ बने हुए सोनिया गांधी के सांसद पुत्र राहुल गांधी हो..
     इन दीवारों के मध्य एक _दीवार_ ओर है जिसका जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि उस _दीवार_ का निर्माण उस ख्यातनाम हस्ती के स्वागत के लिए किया गया है, जिसने खुद अपने देश की सुरक्षा के लिए लम्बी _दीवार_ खड़ी कर रखी है।।

जी हाँ सही समझे....

    मैं बात कर रहा हूँ पहली बार भारत यात्रा पर आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की।

      1911 का प्रसंग है, तब गुलाम भारत के राजा जार्ज पंचम भारत आये थे, तब दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया था। वे जहां रुके (किंग्सवे कैम्प, दिल्ली) से उनके कार्यक्रम स्थल (कॉरोनेशन पार्क) तक के रास्तों की झुग्गियों को 'ढक' दिया गया था, उन स्थान को आज भी 'ढक्का' ही बोलते है, ताकि भारत की राजा के सामने अच्छी तस्वीर पेश की जा सके।

जार्ज पंचम की मूर्ति


      वही सब 110 सालों के बाद पुनः अहमदाबाद में डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत के लिए हो रहा है। एयरपोर्ट से मोटेरा स्टेडियम के रास्ते मे 600 मीटर लम्बी _दीवार_ सौंदर्यीकरण के नाम पर बनाई गई है, ताकि उसके पीछे की झुग्गियां छुपाई जा सके।।


      ये प्रयास उस _दीवार_ के पीछे रहने वाले लोगो के उचित जीवनयापन और निवास व्यवस्था के लिए किए जाते तो _दीवार_ खड़ी करके सौंदर्यीकरण नही करना पड़ता। आज देश के हर शहर में झुग्गियों का जाल फैला हुआ है। 2011 के एक सर्वे के अनुसार मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में क्रमशः 41 %, 29%, 28% और 15% आबादी निवास करती है, हर झुग्गी में कम से कम 5 लोग।
      _दीवार_ फ़िल्म का एक डायलॉग है :-
      "ये दुनिया तीसरे दर्जे का डिब्बा है जिसमे मिसाफ़िर ज्यादा है, जगह कम।"

      उस व्यक्ति के स्वागत के लिए सच छिपाया जा रहा है जो स्वयं झूठ बोलते नही थकते। (अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार राष्ट्रपति बनने के बाद से जनवरी 2020 तक ट्रम्प ने 16 हजार से ज्यादा बार झूठ बोला।)
https://www.washingtonpost.com/politics/2020/01/20/president-trump-made-16241-false-or-misleading-claims-his-first-three-years/
      आगरा में यमुना की सफाई के नाम पर 500 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, अहमदाबाद में _दीवार_ खड़ी की गई, इन सबमे जो खर्च हुआ है वही अगर झुग्गियों को ठीक करने में लगाते तो कुछ लोगों का तो भला होता, पर कुछ मिनट के कार्यक्रम के नाम पर करोड़ों लगाए जा रहे है।

                    जाते जाते....
     एक _दीवार_ बनी थी पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के बीच जिसे जनता ने स्वयं ही ढहा दिया था।
एक _दीवार_ ट्रम्प ने भी बनवाई है, मेक्सिको की सीमा पर लगभग 3200 किमी लम्बी, 48 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार नही झेल पाई और चटक गई।।
      भारत में भी इन अस्थायी दीवारों को ढहाकर इनके पीछे की सच्चाई को मानते हुए उनके विकास हेतु कुछ उचित किया जाना चाहिए ताकि फिर कोई _दीवार_ बनाने की आवश्यकता ना पड़े।

-पवन सिंह 'अभिव्यक्त', मंदसौर