●बाती ने कहा रे दीपक सुन:-
तू तो दुनिया में दिखता है।
◆बोला दीपक की सुन बाती:-
जो दिखता है वो बिकता है।
●सुनकर बाते फिर दीपक की,
बाती फिर से बोल उठी:-
तू दिखता है तो दिख जाए,
तू बिकता है तो बिक जाए।
पर मैं तिल तिलकर जलती हूँ,
और जलते में भी चलती हूँ।।
◆सुनके दीपक भी बोल उठा:-
तू जलती है ये बात सही
पर जग तेल मुझी में ढोता है।
●तेल तुझमे ढोने से क्या
तू प्रकाश दे पाता है।
करने उजियारा दुनिया मे
तू मेरे पास ही आता है।
◆दीपक बाती की सुन व्यथा
ऊंचे स्वर में बोल उठा:-
तू उजाला देती है,
और अंधियारा ले लेती है।
पर मैं जितना चलता हूँ,
उतना तू चल पाती है।
तपता रहता मैं घड़ी घड़ी,
तभी उजाला दे पाती है।
●बोली तुनककर बाती भी:-
मैं जलती सारी रात तभी
तू उजाला दे पाता है,
भरे हुए उस तेल में बता,
डुबकी कौन लगता है।
◆बाती की सुनकर बात ऐसी
दीपक मन्द- मन्द मुस्काया,
बोला मेरी प्यारी बाती,
ये सब तुझे किसने बताया।
तू ना मुझसे नही पराई,
तू मेरी है मैं तेरा हूँ।
बिन तेरे मैं मैं नही,
बिन सूरज का सवेरा हूँ।
●बोली बाती की रे दीपक:-
बिन तेरे ना रह पाऊँगी।
जो तू मेरे पास नही,
मैं तमस नही हर पाऊँगी।
◆अंत में दीपक बोल उठा,
मन की गांठे खोल उठा:-
तू दिल के सारे बैर भूला,
एक दूसरे के हो जाते है।
मिटा के सारे शिकवे गीले,
आ नई दीवाली मनाते है,
हम एक दूजे में खो जाते है।
एक दूजे में खो जाते है।
दीपोत्सव की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
ये दीवाली आपके जीवन मे खुशियों से भरी दीवाली हो।।
-पवन सिंह"अभिव्यक्त"






