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| आपातकाल का काला अध्याय- इंदिरा की तानाशाही |
हिंदुस्तान की नौजवान पीढ़ी, आज के आजादी के माहौल में खुलकर अपने विचार रखती है, जब चाहे देश के विरोड में खड़ी हो जाती है, कभी देश को गाली देने के लिए, कभी देश के टुकड़े करने के नारे लगाने के लिए। सरकार के काम काज की आलोचना भी करती है लेकिन सोचिए अगर नौजवानों को फेसबुक की हर पोस्ट पहले सरकार को भेजनी पड़े और सरकार जो चाहे वही फेसबुक पर दिखे तो क्या होगा?? अगर, ट्विटर, व्हाट्स एप के मैसेज पर सरकार की नजर हो। टीवी पर वही दिखे-अखबार में वही छपे जो सरकार चाहे-यानी लग जाए बोलने-लिखने-सुनने की आजादी पर ताला तो क्या होगा?
आपातकाल, मतलब सरकार को असीमित अधिकार थे।
आपातकाल वो दौर था जब सत्ता ने आम आदमी की आवाज को कुचलने की सबसे निरंकुश कोशिश की। इसका आधार वो प्रावधान था जो धारा-352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार देती है। आपात काल का मतलब था-
-इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं।
-लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी।
-मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे
-सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी।
इंदिरा जिस शॉक ट्रीटमेंट से विरोध शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। एक मरघट की शांति पूरे देश में स्थापित हो गई। फिर भी उस शांति में इंदिरा के घमण्ड का अट्टहास सम्पूर्ण भारत मे गूंज रहा था।।। वो तानाशाही के 19 महीने और उसकी प्रताड़ना जिन्होंने झेली है वो ही बता सकते है।।
जनता का ,जनता के लिये, जनता के द्वारा किया जाने वाला शासन लोकतन्त्र ऐसे पावन शासन की हत्या तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा फिरोज गांधी के द्वारा आज ही के दिन (25 जून 1975 की आधी रात से 21 मार्च 1977) की गई।
मुझे गर्व है की मैं उस संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूँ जिसने देश को इस काले अंधकार से बाहर निकला।
स्वयं उस काले इतिहास को पढ़े और सबको पढाये
⛳ भारत माता की जय⛳
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| "Pawan singh Mandsaur" |
✍🏼 पवन सिंह"अभिव्यक्त"

